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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५५ जंबूद्वीपद्वारसंख्यादि निरूपणम् ६५ नानाद्रुमलता किसलयपल्लवसमाकुलाः नानाद्रुमाणां नानालतानां च ये किसलय रूपा अतिकोमलाः पल्लवास्तैः समाकुलाः संमिश्राः 'छप्पयपरिभुज्जमाणकमलसोभंतसस्सिरीयाओ' षट्पदपरिभुज्यमानकमलशोभमानसश्रीकाः, षट्पदैःभ्रमरैः परिभुज्यमानानि यानि कमलानि तैः शोभमानाः अतएव सश्रीका:शोभातिशयतां प्राप्ताः 'पासाईयाओ४' प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपाः, प्रतिरूपा 'ते पएसे' तान् प्रदेशान् 'उरालेणं जाव गंधेणं आपूरेमाणीओ२ चिटुंति' उदारेण यावत्-मनोज्ञेन ध्राणमनोनिवृतिकरण गन्धेन सर्वतः समन्तात् आपूरयन्त्यः२ अतीवातीवश्रिया उपशोभमानाः२ तिष्ठन्तीति ॥सू०५५॥ मूलम्-विजयस्स णं दारस्स उभयो पासिं दुहओ णिसी हियाए दो दो पगंठगा पन्नत्ता, ते णं पगंठगा चत्तारि जोयगाइं आयामविक्खंभेणं दो जोयणाई बाहल्लेणं सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पयंठगाणं उरि पत्तेयं पत्तेयं पासायवडेंसगे पन्नत्ते, ते णं पासायडिंसगा चत्तारि जोयणाई उडूं उच्चत्तेणं दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं अब्भुलया किसलयपल्लवसमाकुलाओ' यह वनमालाएं अनेक वृक्षों और अनेकलताओं के किसलयरूप पल्लवों से कोमल २पत्तों से युक्त है 'छप्पयपरिभुजमाणकमलसोभंतसस्सिरीयाओ' भ्रमरों द्वारा भुज्यमान कमलों से सुशोभित हैं अतएव ये शोभातिशयवाली हैं 'पासाईयाओ४' प्रासादीय है, दर्शनीय हैं अभिरूप है प्रतिरूप है 'ते पएसे उरालेणं जाव गंधेणं आपूरेमाणीओ२ चिटुंति' ये अपनी उदारगंध से जो कि धाण और मन को शान्ति प्रदान करता है समस्त दिशाओं और विदिशाओं के भूप्रदेशों को गंध से भर कर सुगंधित करती रहती हैं ॥सू० ५५॥ सिसलयपल्लवसमाकुलाओ' २॥ वनभानामा भने वृक्ष मने अने: सतासाना सिसय ३५ ५८सयोथी अर्थात् शुभाशुभम पानाथी युक्त छ. 'छप्पय. परिभुज्जमाणकमलसोभंतसस्सिरीयाओ' जयमान थता अभय द्वारा मवायेस भजाथी सुशालित छ. तेथी। ये शोमान अतिशय वाणी छे. 'पासाईयाओ' ४ प्रासाहीय छे. शनाय छे. मलि३५ छ. अने प्रति३५ छे. 'ते पएसे उरालेणं जाव गंधेणं आपूरेमाणीओ आपूरेमाणीओ चिटुंति' को पोताना हा२ मधथी જે નાક અને મનને શાંતી આપનાર છે, સઘળી દિશા અને વિદિશાએ ના મૂળ પ્રદેશને ગંધથી ભરીને સુગંધવાળો બનાવતા રહે છે. ૫૫ છે जी०९ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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