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________________ ७६० जीवाभिगमसूत्रे व्यवधानं भवति ? अन्यूनानि परिपूर्णानि योजनानां पंचाशत्सहस्राणि परस्परम् चन्द्रस्य सूर्यस्य चान्तरम् ||२७|| प्रतिचन्द्रेण चन्द्रस्य सूर्यस्य रविणा सह । अन्तरं वक्तु मिच्छावान् ग्रन्थकार उवाच यत् - 'सूरस्स य सूरस्सय ससिणो ससिणो य अन्तरं होई, जोयणाणं सयसहस्सं बहियाओ मणुस्स नगस्स ॥' सूर्यस्य सूर्यस्य पारस्परिकमन्तरं च चन्द्रस्य चन्द्रस्य परस्परमन्तरं भवति, लक्षयोजनम्, तथाहि - चन्द्रान्तरिताः सूर्याः सूर्यान्तरिताश्चन्द्रा बहिर्व्यवस्थिताः । एतच्चान्तरं सूचीश्रेण्या न तु वलयाकारश्रेण्या ज्ञातव्यं भवेत् ||२८|| मानुषो पचास हजार योजन का है यह अन्तर चन्द्र से सूर्य का और सूर्य से चन्द्र का है । यह तो पहिले कहा ही जा चुका है कि मनुष्यक्षेत्र से बाहर चन्द्र और सूर्य आदि ज्योतिष विमान अवस्थित हैं इसलिये मनुष्यक्षेत्र में जैसा इनका योग नक्षत्रों के साथ होता है वैसा वहां नहीं होता है वहां चन्द्र अभिजित् नक्षत्र के साथ सदैव युक्त रहता है, और सूर्य पुष्य नक्षत्र के साथ सदा युक्त रहता है । 'सूरस्सय सूरस्सय ससिणो ससिणो य अंतरं होइ, जोयणाणं सयसहस्सं वहियाओ मणुस्स नगस्स' मनुष्यलोक से बाहर चन्द्र का चन्द्र से अन्तर और सूर्य का सूर्य से अन्तर एक लाख योजन का है । चन्द्र से अन्तरित सूर्य और सूर्य से अन्तरित चन्द्र बहि व्यवस्थित हैं चन्द्र और सूर्य का अन्तर ५०००० योजन का प्रकट किया गया है इस तरह यह अन्तर इनका एक लाख योजन का हो जाता है। सूची श्रेणी की अपेक्षा હજાર ચેાજનનું છે. આ અંતર ચંદ્રથી સૂર્યનું અને સૂર્યથી ચંદ્રનુ છે. એ તે પહેલાં કહેવામાં આવી ગયુ' છે કે-મનુષ્ય ક્ષેત્રની બહાર ચંદ્ર અને સૂર્ય વિગેરે ચૈાતિષ્ક વિમાન રહેલા છે. તેથી મનુષ્ય ક્ષેત્રમાં જેવા તેમના યાગ નક્ષત્રોની સાથે થાય છે, એવા ત્યાં થતા નથી. ત્યાં ચંદ્ર અભિજીત નક્ષત્રની સાથે કાયમ રહે છે. અને સૂર્ય પુષ્ય નક્ષત્રની સાથે યુક્ત રહે છે. सूरस्सय सूरस्सय ससिणो ससिणो य अंतर होइ । जोयणाणं सय सहस्स' बाहियाओ मणुस्स नगस्स ।। २८ ।। મનુષ્ય લેાકની બહાર ચદ્રનુ ચંદ્રથી અંતર અને સૂર્યનું સૂય થી અંતર એક લાખ ચેાજનનું છે. ચંદ્રથી ઢંકાયેલ સૂ અને સૂર્યથી ઢંકાયેલ ચંદ્ર મહાર વ્યવસ્થિત છે. ચંદ્ર અને સૂર્ય'નુ' અંતર ૫૦૦૦૦/ પચાસ હજાર ચેાજનનુ‘ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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