SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 735
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२२ जीवाभिगमसूत्रे तहिं तर्हि बहवे पउमरुक्खा, परमवण्णा, पउमवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव चिद्वति - पउममहापउमरुक्खे, एत्थ णं परमपुंडरीया णामं दुवे देवा महड्डिया जान पलिओ महिईया परिवसंति' हे गौतम ! पुष्करवरे हि द्वीपे तत्र तत्र देशे - प्रदेशे बहवः पद्मवृक्षाः पद्मवनानि पद्मवनपण्डाः एते च नित्यं कुसुमिताः पल्लविता: स्तबक- गुच्छ - पुष्प - फल - भारावनतस्कन्धास्तिष्ठन्ति पद्म - महापद्मवृक्षौ च अत्र पद्म-पुण्डरीक नामानौ द्वौ देवौ महर्द्धिकौ यावत् पल्योपमायुष्कौ विशेषणविशिष्टौ परिवसतः । तदुक्तम् 'परमे य महापउमे रुक्खा उत्तरकुरुसु जंबू समा । एएस वसंति सुरा परमे तह पुंडरीए य ॥ १ ॥ छाया - पद्मश्च महापद्मो वृक्षा वुत्तरकुरुषु जंबू समौ । एतयोर्वसतः सुरौ पद्मस्तथा पुण्डरीकश्च ॥ १ ॥ इति । 'से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ पुक्खरवरदीवे - २ जाव णिच्चे' देव णिच्चं कुसुमिया जाव चिट्ठति' हे गौतम! पुष्करचरद्वीप में उन २ स्थानों पर अनेक पद्मवृक्ष पद्मवनखण्ड, सर्वदा कुसुमित पल्लवित और स्तबकित एवं फलों के भार से अवनमित रहते हैं तथा 'पउममहापउमरुक्खे' यहां पद्म और महापद्म नामके जो दो वृक्ष हैं उन पर 'परमपुंडरीया णामं दुवे देवा महिड्डिया जाव पलिओयमद्वितीया परिवसंति' पद्म और पुण्डरीक नाम के दो देव जो कि महर्द्धिक आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाले हैं और जिनकी एक २ पल्योपम की स्थिति है रहते हैं तदुक्तम् - पउमेय महापउमे रुक्खा उत्तरकुरूसु जंबुसमाएएस वसंति सुरा पउमे तह पुंडरीए य ॥ १ ॥ से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं रुक्खा पउमवणसंडा णिच्चं कुसुमिया जाव चिट्ठति' हे गौतम! पु०५२१२ દ્વીપમાં તે તે સ્થાનેાપર અનેક પદ્મવૃક્ષ પદ્મવન ખંડ સદા કુસુમિત પલ્લविताने स्वय्यस्ति तथा इगोना लारथी नभेला रहे छे तथा 'पउममहा पउमरुक्खे' अहींया पद्म अने महापद्म नामना ? मे वृक्ष छे तेना पर 'पउम पुंडरीया दुवे देवा महिढिया जाव पलिओवमट्टिइया परिवसति पद्म भने थुंडરીક નામના એ દેવે કે જેએ મહદ્ધિક વિગેરે પૂર્વોક્ત વિશેષણાવાળા છે, અને જેમની સ્થિતિ એક ચૈાપમની છે. તેઓ રહે છે. એજ કહ્યુ છે કે 'पमेय महापउमे रुक्खा उत्तर कुरुसु जंबूसमा । एएस वसंति सुरा पउमे तह पुंडरीए य ॥ १ ॥ 'से तेणट्रण' गोयमा ! एवं वुच्चति पुक्खरखरदीवे दीवे' તે કારણથી હું ગૌતમ ! આ દ્વીપનું નામ પુષ્કરવર દ્વીપ એ પ્રમાણે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy