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प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३. सू. ९० धातकीपण्डे सूर्यचन्द्रयोर्वर्णनम् बहूनि उत्पलानि तद्योगात् चन्द्रवर्णः चन्द्रद्वीपः कथ्यते । अपि च-चन्द्रो नाम देवो महर्द्धिको यावत्पल्योपमस्थितिकः परिवसति स च सामानिकादीनां यावदाधिपत्यं कुर्वन् विहरति चन्द्रस्वामित्वात् चन्द्रद्वीपो व्यवह्रियते, अन्यच्च गौतम ! चन्द्रद्वीपः शाश्वतः यो न कदापि नासीत् न भवति - न भविष्यति, किन्तु आसी दस्ति भविष्यति, कारणैरेभिचन्द्र द्वीपः २ इति । 'रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अण्णंमि धायइसंडे दीवे - सेसं तं चेव' कुत्र खलु भदन्त चन्द्राभिधाना राजधान्यः ? भगवानाह - हे गौतम ! धातकीखण्ड आदि हैं सो उन सब का वर्ण चन्द्रमा के जैसा है अतः इस निमित्त को लेकर इन द्वीपों का नाम 'चन्द्रद्वीप' ऐसा हो गया है दूसरी बात यह है कि इन द्वीपों में महर्दिक आदि विशेषणों वाले चन्द्रदेव नामके देव रहते हैं इनकी आयु एक पल्योपम की है ये चन्द्रदेव अपने अपने सामानिक आदि देवों के आधिपत्य आदि को करते हुए वहां पर सुख पूर्वक रहते हैं। तीसरी बात यह भी हैं कि इस प्रकार के नाम होने का जो निमित्त प्रकट किया गया है वह एक रूप से नहीं है क्योंकि ऐसा इनका नाम अनादि काल से ही चला आ रहा है यह पहिले भूतकाल में नहीं था, अब भी वर्त्तमानकाल में नहीं है आगे भी भविष्यत् काल में नहीं रहेगा सो ऐसी बात नहीं है क्योंकि यह तो पहिले भी था अब भी है और आगे भी ऐसा ही रहेगा 'रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अण्णंमि घायइसंडे दीवे सेसं तं 'चेव' जब गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा - हे भदन्त ! यहां चन्द्र नामकी राजधानी कहां पर है ? उत्तर में प्रभु ने कहा- हे गौतम ! धातकीલઈને આ દ્વીપોનું નામ ‘ચન્દ્રન્દ્વીપ’ એવુ થયેલ છે. ખીજી વાત એ છે કેઆ દ્વીપમાં મહદ્ધિક વિગેરે વિશેષણેા વાળા ચંદ્ર દેવ નિવાસ કરે છે. તેનુ આયુષ્ય એક ચેપમનું છે. આ ચંદ્રદેવ પોતપોતાનાં સામાનિક વિગેરે દેવાનુ અધિપતિપણું વિગેરે કરતા થકા ત્યાં સુખપૂર્વક રહે છે. ત્રીજી વાત એ છે કેઆવા પ્રકારનું નામ થવાનું આ જે કારણ બતાવવામાં આવ્યું છે, તે એકજ કારણ નથી કેમકે-એ પ્રમાણેનું એનુ નામ તેઓનુ અનાદિ કાળથી જ ચાલતું આવે છે. તે ભૂતકાળમાં ન હતુ, વમાનમાં નથી અને ભવિષ્યમાં પણ રહેશે નહીં એમ નથી. કેમકે એ તેા ભૂતકાળમાં હતું વર્તમાન કાળમાં છે, અને ભવિષ્ય अणमा रहेशे ०४. 'रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अण्णंमि धायइसंडे दीवे सेस तं चेव' न्यारे गौतमस्वामी प्रभुश्रीने मे पूछयु -हे भगवन् म चंद्रा નામની રાજધાની કયાં આવેલ છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રીએ કહ્યું કે-હુ जी० ७९
જીવાભિગમસૂત્ર