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जीवाभिगमसूत्रे सिकताः तासां प्रस्तट:-प्रस्तारो यस्मिन् तत्तथा 'सुहफासे' सुखस्पर्शम् सुखदस्पर्शयुक्तम् , 'सस्सिरीयरूवे' सश्रीकरूपम्-अतिशयसुशोभितरूपविशिष्टम् 'पासाईए४' प्रासादीयं दर्शनीयम् अमिरूपं प्रतिरूपमिति ॥ ___ 'विजयस्स णं दारस्स उभयीपासिं' विजयस्य खलु द्वारस्योभयोः पार्श्वयोरेकैकनषेधिकीभावेन 'दुहओ' द्विधातो द्विप्रकारायां नैषेधिक्याम् नैषेधिकीनिषीदनस्थानम् ‘दो दो चंदणकलसपरिवाडीओ पन्नत्ताओ' द्वे द्वे चन्दनकलशपरिपाट यौ-द्वयो द्वयोः कलशयोः पक्तिः कलशपरिपाटीत्युच्यते ते द्वे द्वे प्रज्ञप्ते-कथिते 'ते णं चंदणकलसा वरकमलपइटाणा' ते खलु चन्दनकलशाः वरकमलप्रतिष्ठानाः, वरं-प्रधानं यत् कमलं तत् प्रतिष्ठानम्-आधारो येषां ते तथा श्रेष्ठ कमलोपरि प्रतिष्ठिता इत्यर्थः, तथा-'सुरभिवरवारि पडिपुण्णा' सुरभिके स्कन्ध से निर्मापित है 'तवणिज्जवालुयापत्थडे' तपनीय सुवर्ण की वालुकाओं का जिस में प्रस्तट-प्रस्तार है 'सुहफासे' स्पर्श जिसका सुखप्रद है। 'सस्सिरीयरूवे' रूप जिसका बडा सुहावना या लुभावना है और 'पासाईए' जो प्रासादीय दर्शनीय अभिरूप एवं प्रतिरूप इन विशेषणों वाला है ऐसा यह जम्बूद्वीप का विजय नामका द्वार है 'विजयस्सणं दारस्स उभयोपासे' विजयद्वार की दोनों तरफ 'दुहतोणिसीहियाए' दो नैषेधिकियां है। बैठने के स्थान है 'दो दो चंदणकलसपरिवाडीओ' इन दोनों स्थानों पर दो दो चन्दन के कलशों की पंक्ति रखी हुई है 'तेणं चंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा' ये चन्दनकलश सुन्दरकमल जिनका आधार है ऐसे है अर्थात् इन चन्दनकलशों के नीचे सुन्दर कमल है उनके ऊपर ये स्थापित है। 'सुरभिवरवारिपडिपुण्णा' इन में सुगंधित जल भरा हुआ है 'चंदणकयचच्चागा' वालयापत्थडे' तपनीय सोनानी वायु रेतीन प्रस्तट अनेरा छ. 'सुहफासे' रेन। २५० सु५४२ छे. 'सस्सिरीयरूवे' रेनु ३५ धा सोडामा मन सोमामा छ. अने. 'पासाईए' ते प्रासाहीय, शनीय, मलि३५, अने प्रति३५ से पधार વિશેષણવાળું અને ઘણું જ રમણીય આ જંબુદ્વીપનું વિજય નામનું દ્વાર છે. 'विजयस्स णं दारस्स उभओ पासे' यि ६२नी पन्ने मान्नु 'दुहतोणिसीहियाए' सापडीयो छ. नैवेधिछी मेरो मेसवानु थान छ. 'दो दो चंदणकलस परिवाडीओ' से मन्न स्थान। ५२ मे मे यहनना सशानी परत शवामा मावेश छ. 'तेणं चंदणकलसा वरकमलपइट्ठाणा' से यहन ४स। सु२ भ ने। આધાર છે. એવા છે. અર્થાત્ એ ચંદન કલશેની નીચે સુંદર કમળે છે. ते पर अ२ छ.तेन। ५२ ते ४स। रामे छे. 'सुरभिवारिपरिपुण्णा' तेमा
જીવાભિગમસૂત્ર