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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५५ जंबूद्वीपद्वारसंख्यादि निरूपणम् ४९ सामान्येन पूर्व कथितम् 'सेए वरकणगथूभियागे' तदेवात्र विस्तारेण प्रदशितम्, सम्प्रति-तदेव श्वेतत्वमुपसंहारव्याजेन पुनरपि प्रदर्शयति-'सेए' श्वेतम् श्वेतत्वमेवोपमया दृढी करोति-'संख' इत्यादि, 'संखतलविमलणिम्मलदधिधणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासे' शङ्खतलविमलनिर्मलदधिधनगोक्षीरफेनरजतनिकरप्रकाशम्, विमलं-विगतमलं यत शङ्कतलम शङ्खस्योपरितनो भागः यश्च निर्मलो दधिधनोधनीभूतदधि गोक्षीरफेनो रजतनिकरश्च तद्वत् प्रकाशो यस्य तत्तथा, 'तिलगरयणद्धचंदचित्ते' तिलकरत्नार्द्धचन्द्रचित्रम्, तिलकरत्नानि-पुण्ड्रविशेषास्तैः तथाऽर्द्धचन्द्रश्च चित्रम् नानारूपं तत्तथा, 'णाणामणिमयदामालंकिए' नानामणिमयदामालकृतम् नानामणिमयानि-दामानि-मालास्तैरलङ्कृतम् 'अंतोय बहिंय सण्हे' अन्तश्च बहिश्च श्लक्ष्णं इलक्ष्ण पुद्गलस्कन्धनिर्मापितम् 'तवणिज्जवालुया पत्थडे' तपनीयवालुकाप्रस्तटम्, तपनीयाः-तपनीयमन्यः सुवर्णमय्यो बालुकाः __ अब सूत्रकार 'सेयवरकणगथूभियागे' इस पाठ में जो श्वेत पद कहा गया है उस श्वेत तत्वकी पुष्टि करने के लिये 'संखतलविमलणिम्मलदधिधणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासे' कहते है कि जैसा श्वेत शङ्खतल होता है, और जैसा वह विमल-विगतमलवाला-होता है, इसी प्रकार का यह भी सफेद है तथा जैसा निर्मल धनीभूतदधि होता है। गाय के क्षीर का फेन जैसा निर्मल सफेद होता है, तथा रजत चांदी का निकर जैसा निर्मल सफेद होता है उसी प्रकार का इसका शुभ्र प्रकाश है 'तिलगरयणद्धचंदचित्ते' तिलकरत्नों-पुण्ड्रविशेषों एवं अर्ध चन्द्रों से जो नानारूप बना हुआ है। ___णाणामणिदामालंकिए' अनेकमणिमयमालाओं से जो अलंकृत हो रहा है 'अंतोच्च बहिं य सण्हे' भीतर और बाहर में जो श्लक्ष्ण पुद्गलों वे सूत्र४२ 'सेए वरकणगभियागे' २ मा र श्वेत५६ छु छ, ते वेतनी पुष्टि ४२१॥ माटे सूत्र४२ नीयन सूत्र पाथी ४ छ 'संखतल विमलणिम्मलदधिघणगोखीर फेणरययणिगरप्पगासे' न स त डाय छ, અને તે જેવું વિમલ મલવિનાનું હોય છે. એ જ રીતથી આ પણ શ્વેત છે. તથા જેવું નિર્મલ જમાવેલ દહીં હોય છે. ગાયના દૂધના ફીણ જેવા સફેદ હોય છે. તથા રજન–ચાંદીને સમૂહ જે નિમલ અને સફેદ હોય છે. એજ शतन। तेन प्र४१श्वेत छ. तिलगरयणद्धचंदचित्ते' तिA २त्नी विशेष। भने म यद्रोथी रे मने प्र४२थी सोडामा अनेसा छ. 'णाणामणिदामालंकिए' भने मणिमय भाणामाथी २ मत थ६ २९ छे. 'अंतोच्च बहियसण्हे' महरनी मा. मडा२ रे १६५ पुगताना २४पाथी मनापेस छ. तवणिज्ज जी० ७ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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