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________________ ६०६ जीवाभिगमसूत्रे पेढियाओ दो जोयणाई जाव सीहासणा सपरिवारा भाणियव्वा' तद्बहुसमरमणीयभूमिभागस्य बहुमध्यदेश भागे महत्येका मणिपीठिका, सा चाऽऽयामविष्कम्भाभ्यां द्वे योजने तदुपरिदिक्षु सामानिकयोग्य भद्रासनानि चतस्रग्रमहिषीसप्ताऽनीकाधिपति षोडशात्मरक्षकदेवसहस्र योग्य भद्रासनानि भणितव्यानि । 'तब अट्टो' तथैवाऽर्थः नामाभिधानचिन्तायाम् - 'गोयमा ! बहुसु खुड्डासु खुड्डियासु बहूइ उप्पलाई चंदवण्णाभाई - चंदा एत्थ देवा महिड्डिया जाव पालिओवमडिया परिवसंति' भगवानाह - गौतम ! बह्वी क्षुद्राक्षुल्लिका वापीसु यावद विलपक्तिकामु बहूत्पल कुमुद-पद्म-पुण्डरीक महापुण्डरीक - शतसहस्रसणा सपरिवारा भाणियव्वा तहेव अट्ठो' उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के बीच में रहे हुये प्रासादावतंसक के ठीक मध्य भाग में एक मणिपीठिका है उसकी लम्बाई चौडाई दो योजन की है इस पर एक सिंहासन है इस की चारों ओर सामानिक देवों के योग्य भद्रासन है । यहां चार अग्रमहिषियों के सात अनीकाधिपतियों के १६ हजार आत्मरक्षक देवों के भद्रासनों का भी वर्णन कर लेना चाहिये इन चन्द्रद्वीपों का यह नाम अनादि निधन है इस सम्बन्ध में जैसा कथन पहिले किया गया है वैसा ही यहां पर भी कर लेना चाहिये हे भदन्त ! इन द्वीपों का नाम चन्द्रद्वीप ऐसा क्यों हुआ है ? तो इसका कारण प्रभु ने गौतम को ऐसा बतलाया है कि हे गौतम! 'बहुसु खुड्डासु खुड्डियासु बहुई उप्पलाई चंदवण्णाभाई चंदा एत्थ देवा महिड्डिया जोव पलिओवमट्ठिया परिवसंति' इस द्वीप में जितनी भी छोटी - જીવાભિગમસૂત્ર " 5 वर्षान ४री सेवु'. 'बहुमज्झ० मणिपेढियाओ दो जोयणाई जाव सीहासणा सपरिवारा भाणियव्या तव अट्ठों' से महुसभरभणीय भूमिलागनी पथमा रहेला પ્રાસાદાવત'સકની બરાબર મધ્યભાગમાં એક મણિપીઠિકા છે. તેની લખાઇ પહેાળાઇ એ ચેાજનની છે. તેના પર એક સિંહાસન છે. તેની ચારે બાજુ સામાનિક દેવાને ચાગ્ય ભદ્રાસના છે. અહીંયાં ચાર અગ્રસહિષિયાના, સાત અનીકાધિપતિયાના અને ૧૬ સેળ હજાર આત્મરક્ષક દેવાના ભદ્રાસનાનુ વર્ણન પણ કરી લેવું. આ ચંદ્ર દ્વીપનું આ નામ અનાદિકાલીન છે. આ સંબંધમાં જેવું વન પહેલાં કરવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનુ વણુન અહીંયાં પણ કરી લેવું. હું ભગવન્ આ દ્વીપનું નામ ચદ્ર દ્વીપ એ પ્રમાણેનું કેમ કહેલ છે ? તે તેનું કારણ પ્રભુશ્રીએ ગૌતમસ્વામીને એ રીતે કહેલ छ - गौतम ! 'बहुसु खुड्डासु खुइडियासु बहुई उप्पलाई चंदवण्णाभाई चंदा एत्थ देवा महिsढिया जाब पलिओवमट्ठिइया परिवसंति' मा द्वीपमां नानी मोटी
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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