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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३. उ. ३ सू. ८९ जम्बूद्वीपगतयोश्चन्द्रयोश्चन्द्रद्वीपनि० ६०३ तथैव राजधान्यौ स्वकयोपयोः पश्चिमेन तिर्यगसंख्येयान् लवणे - एव द्वादश योजनानि तथैव सर्वं भणितव्यम् ॥ ७८ ॥ टीका- 'कहिणं भंते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पन्नत्ता' क्व नु खलु भदन्त ! जम्बुद्वीपगत चन्द्रयोश्चन्द्र द्वीपो नाम द्वीप प्रज्ञप्तौ ? भगवानाह - 'गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमेणं लवणसमुदं बारसजोयणसहस्सा ओगाहित्ता - एत्थणं जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पन्नत्ता' गौतम ! जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे मन्दर पर्वतात्पूर्वस्यां लवणसमुद्रमवगाह्य द्वादश योजनसहस्राणि अत्रैव हि जम्बुद्वीपं प्रभासयतोश्चन्द्रयोनूनं चन्द्रatit प्रसिद्ध | 'जंबुद्दीवं तेणं अद्धेकोण णउइ जोयणाई चत्तालीसं च पंचाणउड़ भागे जोयणस्स उसिया जलताओ - लवणसमुदं तेणं दो कोसे उसिया जलंजम्बूद्वीपगत चन्द्रद्वीप का वर्णन 'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंद दीवा पण्णत्ता' इत्यादि । टीकार्थ- हे भदन्त ! जम्बूद्वीपगत दो चन्द्रमाओं के दो चन्द्रद्वीप कहां पर है उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुहं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं जबूद्दीवगाणं चंदाण चंद दीवा णामं दीवा पन्नत्ता' हे गौतम! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्वदिशा में लवणसमुद्र में १२ हजार योजन आगे जाने पर वहां जम्बूद्वीप को प्रकाशित करने वाले दोनों चन्द्रमाओं के दो चन्द्र द्वीप हैं 'जंबुद्दीवं तेणं अद्धेकोणणउइ जोयणाई' चत्तालीस पंचाणउति भागे जोयणस्स उसिया जलंताओ लवणसमुद्द तेणं दो कोसे ऊसिता जलताओ बारसजोयणसहस्साइ आयाम જ બુઢીપમાં આવેલ ચંદ્ર દ્વીપનુ. વ ન 'कहि भते ! जंबूद्दीवगाणं चंदाणं चंद दीवा पण्णत्ता' इत्यादि ટીકા-હે ભગવન્ ! જમૂદ્રીપમાં આવેલ બે ચંદ્રમાએના એ ચંદ્રન્દ્વીપો श्यां आवेला छे ? या प्रश्नना उत्तरमा अनुश्री हे छे - 'गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुदं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं जंबुद्दीवगाण चंद्राण चंदीवा णामं दीवा पण्णत्ता' हे गौतम! यूद्वीपनां भे३ પતથી પૂદિશામાં લવણ સમદ્રમાં ૧૨ ખાર હજાર ચેાજન આગળ જવાથી बूद्वीपने प्राशित १२वावाणा भन्ने चंद्रभागाना में चंद्र द्वीपो छे. 'जंबुद्दीवंतेणं अद्धेकोणणउइजोयणाई चत्तालीसं पंचाणउति भागे जोयणस्स उसिया जलंताओ लवणसमुदंतें दोकोसे ऊसिता जलंताओ बारस जोयणसहरसाईं જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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