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________________ ४६ जीवाभिगमसूत्रे अर्गलाप्रासादाः यत्र अर्गला नियम्यन्ते, तथा चैतौ द्वावपि वज्ररत्नमयौ इति । 'वइरामई आवत्तणपेढिया' वज्ररत्नमयी आवर्तनपीठिका यत्रेन्द्रकीलको भवति, 'अंकोत्तरपासए' अङ्कोत्तरपार्श्वकम्, अङ्करत्नमया उत्तरपार्था यस्य तत् अङ्कोत्तरपार्श्वकम् 'निरंतरियधणकवाडे' निरन्तरिकधनकपाटम्, निर्गता अन्तरिका लध्वन्तररूपा ययोस्तौ निरन्तरिको अतएव धनौ कपाटौ यस्य तन्निरन्तरिकधनकपाटम् 'भित्तिसु चेव भित्तिगुलिया छप्पणा तिन्नि होति' तस्य द्वारस्योभयोः पायो भित्तिषु भित्तिगता भित्तिगुलिकाः पीठसंस्थानीया स्तिस्रः षट्पञ्चाशत्त्रिक प्रमाणा भवन्तीति । 'गोमाणसी तत्तिया' गोमानस्यः शय्या स्तावन्मात्राः पटूपश्चाशत्त्रिक त्रिकप्रमाणा भवन्तीत्यर्थः ‘णाणा मणिरयणवालरूवगलीलट्ठियसालिभंजिया' नानामणिरत्नानि-नानामणिरत्नमयानि व्याल (नाग) रूपकाणि लीलास्थितशालभञ्जिकाश्च-लीला स्थित-पुत्तलिकाश्च यस्य तत्तथा 'वइरामय रहने के स्थान भी वज्ररत्न के बने हुए है जिन पर अर्गला लटकाई जाती है वे यहां अर्गला प्रासाद शब्द से कहे गये है। 'वयरामई आवतणपेढिया' जहां पर इन्द्रकीलिका रहती है ऐसी वह आवर्तनपीठिका भी वस्त्ररत्नकी बनी हुई है 'अंकोत्तरपासए' इन किवाडों का उत्तर पार्श्व भीतर का पार्श्व भाग-अङ्करत्नका बना हुआ है। 'णिरंतरियधणकवाडे' इस द्वार के कपाट ऐसे मजबूत और आपस में जुडे हुए हैं कि जिनमे थोडा सा भी अन्तर नहीं पडता है अर्थात् छिद्र नही दिखाई पडता है। 'भित्तिप्तु चेव भित्तिगुलिया छपन्नातिनि होंति' भीतों में १६८ भित्तिगुलिका-खूटियां-है 'गोमाणसीतत्तिया' गोमानसीशय्याएं-भी १६८ ही है । 'णाणामणिरयण वालरूवगलीलहिय सालभंजिया' नानामणियों और रत्नों के इस द्वार पर व्यालों के चित्र लाओ' तनी AT A Hism 4 रत्ननी मने छ. 'अग्गलपासाया' मा प्रासा४ २ २०४थी उस छ. 'वइरामई आवत्तणपेढिया' भाद्रशासि हे सेवी ते सात न पा6814] १०१२त्ननी पनेरा छ. 'अंकोत्तरपासए' से કમાડાને ઉત્તર પાર્ધા–અંદરની બાજુને ભાગ અંક રત્નને બનાવેલ છે. 'निरंतरियधणकवाडे' से वारना ४मा सेवा भरभूत मने ५२२५२ डायेसा છે કે જેમાં જરા સરખું પણ અંતર પડતું નથી. અર્થાત્ છિદ્ર દેખાતું નથી. 'भित्तिस चेव भित्तिंगुलिया छप्पन्न। तिन्नि होंति' तेनी मी तामा १६८ मेसे। 48 मित्तिशुलिया-भूटियो छे ‘गोमाणसीतत्तिया' शय्यामा ५९ १६८ सो २०७४ २१ छ. 'णाणामणिरयणवालस्वगलीलद्विय सालभंजिया' भने પ્રકારના મણિયે અને રત્નથી નિર્મિત એ દ્વાર પર વ્યાલો-સર્પોના ચિત્રો જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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