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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५५ जंबूद्वीपद्वारसंख्यादि निरूपणम् ४५ इन्द्रकीलः गोमेयको रत्नविशेषस्तन्मय इन्द्रकीलः, 'लोहितक्खमईओ दार. चेडीओ' लोहिताक्षरत्नमस्यौ द्वारचेटयौ द्वारशाखे 'जोतीरसमए उत्तरंगे' ज्योतीरसमयमुत्तरङ्गम् द्वारस्योपरि तिर्यग् व्यवस्थितं काष्ठम् 'वेरुलिया मया कवाडा' वैडूर्य्यरत्नमयौ कपाटौ, 'वइरामया संधी' वज्रमय्यः संधय सन्धिमेलाः फलकानाम्, वनरत्नापूरिताः फलकानां सन्धय इत्यर्थः 'लोहितक्खमइओ सूइओ' लोहिताक्षरत्नात्मिकाः सूचयः फलकद्वयसम्बन्ध विधनाभाव हेतुपादुकास्थानीयाः, 'णाणामणिमया समुग्गया' नानाणिमयाः समुद्काः, समुद्गका इव समुद्काः सूतिकागृहाणि तानि नानामणिमयानि 'वइरामईओ अग्गलाओ अग्गलपासाया वजरत्नमय्योऽर्गला अर्गलाप्रासादाः, तत्र अर्गलालोकप्रसिद्धा इदकीले' गोमेद रत्न का इसका इन्द्रकील बना हुआ है 'लोहितक्खमईओ दारचेडीओ' लोहिताक्षरत्न की इसकी द्वार शाखाएं बनी हुई है। 'जोइरसामए उत्तरंगे' इसका उत्तरंग द्वार के ऊपर तिर्यग रूप से रखा हुआ काष्ठ-ज्योतीरस रत्न का बना हुआ है 'वेरुलियामया कवाडा' इस द्वार के किवाडवैडूर्यरत्न के बने हुए है । 'वइरामया संधी' इन किवाडों की संधिया वज्ररत्न की हैं । अर्थात् इन किवाडों के पटियों की जो संधिया है वे वज्ररत्न की हैं । अर्थात् इन किवाडों के पटियों की जो संधियां है वे वज्ररत्न से भरी हुई हैं । 'लोहितक्खमइओ सईओ' किवाडों के दोनों पटियों को आपस में विघटित न होने देने में कारण भूत पादुका के स्थानापन्न सूचियां-कीले लोहिताक्ष रत्न की बनी हुई है। 'णाणामणिमया समुग्गया' समुद्रक की तरह समुद्गक-सूतिका गृह-नानामणियों के बने हुए है। 'वयरामईओ अग्गलाओ' अर्गला वज्ररत्नकीबनी हुई है । 'अग्गलपासाया' अर्गला प्रासाद-अर्गलाओं के तीस गोभे रत्ननो मने छ. 'लोहितक्खमईओ दारचेडीओ' साक्षि रत्ननी तेनी २ था । अनेस छ. जोइरसामए उत्तरंगे' तेन ઉતરંગ અર્થાત દ્વારની ઉપર તિછું રાખવામાં આવેલ કાષ્ઠ તીરસ રત્નનું अनेस . 'वेरुलियामया कवाडा' ते वान घास सु४२ ४७ वैश्य रत्नना मनेरी छ. 'वहरामया संधी' से मान सांधान मास १००२ननी બનેલ છે. અર્થાત્ એ કમાડાના પાટિયાના સાંધાને જે ભાગ છે, તે વજ २त्नथी पूरे छ. 'लोहितक्खमईओ सूईओ' माना अन्न पाटियामाने એક બીજાથી જુદા ન પડવા દેવાના કારણ રૂપ તેમાં જે સૂચિયો ખીલા सवामा मावेस छते सोडिताक्षर २त्नाना ने छे. 'णाणामणिमया समुग्गया' सभुश सूति । मने प्रारना भणियोना पनेसा छ. 'वइरामईओ अग જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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