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________________ ५६४ जीवाभिगमसूत्रे दोषः । एवमत्र गोस्तूप नामा भुजगेन्द्रो भुजगराजो महद्धिको महाद्युतिको महाबलो महानुभावो महासौख्यः पल्योपमस्थितिमान् परिवसति, ‘से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोथूभस्स आवासपव्वयस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरइ' स गोस्तूप भुजगराजस्तत्र चतुःसामानिक साहस्री चतसृसपरिवारा महिषी तिसृपषत्सप्तानीकाऽनीकाधिपति षोडशात्मकरक्षकदेव सहस्राणां तद्राजधान्याश्चाऽन्यद्वास्तव्यदेवदेव्यादीनां यावदधिपत्यादि कुर्वाणो विहरति तत्तत्स्वामिकत्वाद्गोस्तूपावासो नाम भवति । ‘से तेणटे णं जाव णिच्चे' तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते गोस्तूपो नामाऽऽवास पर्वत इति।। आदि विशेषणों वाला है और एक पल्योपम की इसकी स्थिति है इस कारण इस पर्वत का नाम 'गोस्तूप' ऐसा कहा गया है अथवा 'गौस्तुभ' ऐसा जो इस पर्वत का नाम है वह अनादि कालिक है इससे यह व्यवहार पराश्रित नहीं हैं 'से णं तत्थ सामाणिय साहस्सीणं जाव गोथूभस्स आवासपव्वयस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरंति' यह गोस्तूप नामका नागराज नागेन्द्र चार हजार सामानिक देवों का चार सपरिवार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदाओं का, सात अनीकों का, सात अनीकाधिपतियों का १६ हजार आत्मरक्षक देवों का गोस्तूप पर्वत का, गोस्तूप राजधानी का और इस राजधानी में रहने वाले दूसरे और अनेक देवों का एवं देवियों का आधिपत्य करता हुआ यावत् सुख से रहता है । अतः गोस्तूप नामक देव का इसमें अधिकार होने से इस पर्वत का नाम गोस्तूप पर्वत ऐसा हुआ है 'से तेणढे णं जाव णिच्चे' यही बात इस पर्वत के इस नाम करण દ્ધિક વિગેરે વિશેષણ વાળા છે. અને તેમની સ્થિતિ એક પલ્યોપમની છે. તે કારણથી આ પર્વતનું નામ “ગેસૂપ’ એ પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે; અથવા “તૂભ” એવું જે આ પર્વતનું નામ છે તે અનાદિ કાલિક છે. તેથી આ व्यवहार ५२॥श्रित नथी. 'से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोथूभस्स आवासपव्वयस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरंति' मा गस्तूम नामना નાગરાજેન્દ્ર ચાર હજાર સામાનિક દેવેનું સપરિવાર ચાર અમહિષિનું ત્રણ પરિષદાઓનું સાત અનીકેનું સાત અનીકાધિપતિનું ૧૬ સેળ હજાર આત્મરક્ષક દેવોનું શેતૂભ પર્વતનું ગોતૂભ રાજધાનીનું અને એ રાજધાનીમાં રહેવાવાળા અન્ય અનેક દેનું અને દેવિયેનું અધિપતિપણું કરતા થકા સુખપૂર્વક રહે છે. ગૌસ્તુભ નામના દેવને તેમાં અધિકાર હોવાથી. આ પર્વતનું નામ ગેસ્તૂપ ५वत से प्रभारी थयेट छ. 'से तेणतुणं जाव णिच्चे' से बात मा पतन જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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