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________________ जीवाभिगमसूत्रे भूमिभागाः - उल्लोकाः मणिपीठिका पञ्च धनुः शता, देवशयनीयम् - भणितव्यम् अ खलु या सा दक्षिणा शाला अत्र खलु एको महान् प्रासादावतंसकः प्रज्ञप्तः क्रोशं चोर्ध्वमुच्चैस्त्वेनार्धक्रोशमायामविष्कम्भाभ्याम् अभ्युद्गतोच्छ्रित० अन्तो बहुसम० उल्लोकाः । तस्य खलु बहुसमरमणीयस्य भूभिभागस्य बहु मध्यदेशभागे सिंहासनं सपरिवारं भणितव्यम् । तत्र खलु या सा पश्चिमा शाला अत्र खलु प्रासादावतंसकः प्रज्ञप्तः तदेव प्रमाणं सिंहासनम् सपरिवारं भणितव्यम् । तत्र खलु raj' और इतने ही वे प्रवेश वाले हैं । इस तरह का इनके सम्बन्ध में वर्णन पूर्व की तरह यावत् वनमाला तक करना चाहिये साथ में भूमिभागों का, ऊपर की छत का पांच सौ धनुष की मणिपीठिका का और देव शयन का भी वर्णन करना चाहिये 'तत्थणं जे से दाहिजिल्ले साले एत्थणं एगे महं पासायवडें सए पण्णत्ते' दक्षिण दिशा में जो शाखा है उस पर एक प्रासादावतंसक है 'कोसं उ उच्चत्तेनं अद्धको आयामचिक्खंभेणं अवभुग्गय मूसिया अंतो बहुसम० उल्लोया' वह एक कोश का ऊंचा है आधा कोश का लम्बा चौडा है इस से यह ऐसा मालूम पडता है कि मानों आकाश तल को ही छू रहा है इसके भीतर का भूमिभाग बहुसमरमणीय है इस पर छत भी है 'तस्सणं बहुसमरमणिज्ज भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए सीहासणं सपरिवारं भाणियब्वं' उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के बहुमध्य देश भाग में एक सपरिवार सिंहासन हैं । 'तत्थणं जे से पचस्थिमिल्ले साले एत्थ पासायवडें सए पण्णत्ते तं चेव पमाणं सीहासणं पेढिया पंचधणुसइया देवसयणिज्जं भाणियव्वं' भने भेटलान प्रवेश वाणा छे. આ પ્રમાણેનું તેના સ ંબંધનુ વર્ણન પહેલાની જેણુ યાવત્ વનમાળા સુધી ५२ हो. 'तत्थ जे से दाहिणिल्ले साले एत्थणं एगे महं पासा यवडें सए पण्णत्ते' दृक्षिण दिशामा ने शाखा छेतेना पर प्रासादावत स छे, 'कोसं उड़्ढं उच्चत्तेणं अद्धकोसं आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिया अंतो बहुसमरमणीया उल्लोया' ते प्रासादावतंस ! अस (यु छे, भने अर्धा असनी संभा વાળું છે. તેથી એ એવુ જણાય છે કે જાણે તે આકાશ તળનેજ સ્પશી રહેલ છે તેની અંદરને ભૂમિભાગ હુસમરમણીય છે. તેના પર અગાશી છે. 'तस्स णं बहुसमरमणिज्जरस भूमिभागस्स बहुमझदेसभाए सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं' से मडुसभरभणीय भूमिभागना मडुमध्य हेशलागमां थे। परिवार सहित सिंहासन छे. 'तत्थणं जेसे पच्चत्थिमिल्ले साले एत्थणं पासायवडेंसर पण्णत्ते तं चैव पमाणं सीहासणं सपरिवारं भाणियव्वं पश्चिम हिशानी शाखा ५२ मे ४७० જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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