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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू.७८ जम्बूवृक्षस्य चतुःशाखावर्णनम् ४६९ सयाई उव्वेहेणं अच्छाओ - सण्हाओ - लव्हाओ - घटाओमट्टाओ णिष्पकाओ जाव पडिरूवाओ वण्णओ भाणियव्वो जाव तोरणाणि ॥ सू० ७८ ॥ छाया - जम्ब्वाः खलु सुदर्शनायाचतुर्दिशि चतस्रः शाला: प्रज्ञप्ताः तद्यथापूर्वस्यां दक्षिणस्यां पश्चिमाया मुत्तरेण-तत्र खलु या-सा पूर्वा शाला अत्र - खलु एक महद्भवनं प्रज्ञतम् एकं क्रोशमायामेनाऽर्धक्रोशं विष्कंभेण-देशोनं क्रोशमूर्ध्वमुच्चैस्त्वेनाऽनेक स्तम्भ० वर्णको यावद् भवनस्य द्वारम् तदेव प्रमाणं पञ्चधनुः शतानि - ऊर्ध्वमुच्चैस्त्वेन अर्धतृतीयानि विष्कम्भेण यावद् वनमाला : 'जंबूएणं सुदंसणा ए' इत्यादि । टीकार्थ- 'जंबूएणं सुदंसणाए चउदिसिं चत्तारि साला पण्णत्ता' सुदर्शना जिसका दूसरा नाम है ऐसे इस जंबू वृक्ष की चार दिशाओं में चार शाखाएं हैं वे दिशा- पूर्व-दक्षिण, उत्तर और पश्चिम हैं इन में जो पूर्व दिशा की 'साले' शाखा है उस पर 'एंगे महं भवणे पणते' एक विशाल भवन है 'कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसूणं कोसं उड्ड उच्चतेणं' यह एक कोश का लम्बा है आधा कोश का चौडा है और कुछ कम एक कोश का ऊंचा है 'अणेगथंभ० वष्णओ' यह अनेक खंभे वाला है इसका वर्णन पूर्व जैसा है यह वर्णन द्वार तक के पाठ का लिया गया है इसके द्वार पांचसौ धनुष के ऊंचे हैं । अढाई सौ धनुष के चौडे हैं 'जाव वणमालाओ भूमिभागा, उल्लोया, मणिपेढिया, पंचधणुसतिया, देवसयणिज्जं भाणि I 'जंबूपणं सुदंसणाए ' इत्यादि टीअर्थ - जंबूएणं सुदंसणाए चउदिसिं चत्तारि साला पण्णत्ता' धेनुं जीन्नु નામ સુદર્શના છે એવા આ જમૃદ્ધીપની ચારે દિશાએમાં ચાર શાખાઓ છે. અર્થાત્ પૂર્વ પશ્ચિમ દક્ષિણ અને ઉત્તર એ ચારે દિશાઓમાં એક એક શાખા छे. तेमां ने पूर्व दिशानी 'साले' शामा छे, तेनी उपर 'एग महं भवणे पण्णत्ते' मे विशाल भवन छे. 'कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूणं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं' तेनी संगा मे असनी छे भने तेनी पहोगा अर्धा असनी छे भने ४६४ उभ अर्धा डोसनी या छे. 'अणेगधंभ० वण्णओ' તે અનેક સ્ત ંભા વાળું છે. તેનું વર્ણન પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. એ વન દ્વાર સુધીના પાઠે પર્યંન્ત લીધેલ છે, તેના દ્વારા પાંચસો ધનુષ ઉંચા છે, २५० मढिसो धनुष होला छे. 'जाव वणमालाओ भूमिभागा उल्लोया मणि જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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