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________________ ४२८ जीवाभिगमसूत्रे णाई सव्वग्गेणं पन्नत्ते' सर्वाग्रेण सातिरेकाणि दशार्धयोजनानि प्रज्ञप्तानि । 'तस्सणं पउमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते' तस्य खलु पद्मस्याऽयं वक्ष्यमाणस्व. रूपो वर्णावासः वर्णनक्रमः प्रज्ञप्तः 'तं जहा' तद्यथा-'वइरामया मूला' पद्ममूलं वन्नरत्नमयम् 'रिट्ठामए कंदे' रिष्टरत्नमयः कन्दः 'वेरुलियामए नाले' वैडूर्यरत्नमयो नालः 'वेरुलिया मया बाहिरपत्ता' बाह्यपत्राणि पद्मानां वैडूर्यमयाणि'जंबणयमया अभितरपता जाम्बूनदो विशिष्टः स्वर्णजातौ तदाकाराण्यन्तः पत्राणि, 'तवणिजमया केसरा' केसराणि-कमलकिंजल्कानि कनकमयानि 'कणगामई कण्णिया' कनकमयी कर्णिका कमलस्य पुष्पपत्रकेसरान्तः स्थलम् 'नानामणिमया पुक्खरत्थिबुका' नानामणिमयी पुष्करस्थिबुका 'साणं कण्णिया अद्धजोयणं आयामविक्खंभेणं' सा खलु पुष्कर-कमल कर्णिकाऽर्धयोजनमायामविष्कम्भेण 'तं इस की दश योजन की है 'दोकोसे उसिते जलंतातो' जल से यह दो कोश ऊंचा उठा है 'सातिरेगाइं दसद्धजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ते' इस तरह यह कमल साधिक दश योजन का है। 'तस्स णं पउमस्स अयमेयाखवे वण्णवासे पण्णत्त इस पद्म का वर्णन इस प्रकार से कहा गया है 'वइरामया मूला' इसका मूल वज्ररत्नमय है 'रिट्ठामए कंदे' अरिष्ट रत्नमय इसका कन्द है 'वेरुलियामए नाले' वैडूर्य रत्नमय इस का नाल है 'वेरुलिया मया बाहिरपत्ता' वैडूर्य रत्नमय इसके बाहर के पत्ते हैं 'जंबूणयमया अभितरपत्ता' जंबूनद रत्नमय इसके भीतर के पत्र हैं 'तवणिजमया केसरा' इसके केसर पराग तपनीय सुवर्ण मय हैं 'कणगामई कणिया' कनकमय इसकी कर्णिका हैं 'नाणामणिमया पुक्खरत्थिया' अनेक मणियों की इसकी स्थिबुका है । 'सा णं कणिया अद्धजोयणं आयामविक्खंभेणं' यह कर्णिका लम्बाई चौडाई १० ४३५ योनी छे. 'दो कोसे उसिते जलंताओ' etथी मे मे सिखा या नीणेसा छे. 'सातिरेकाई दसद्धजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ते' २। रीते २॥ भर ४४४ थारे ४० याननु छ. 'तस्सणं पउमस्स अयमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते' २॥ ५मनु न २ प्रमाणे ४ामा मावस छे. 'वइरामया मूला' तेना भूस मा २त्नमय छ. रिद्वामए कंदे' (२टरत्नभय तेन। ४६ मा छे. 'वेरुलिया मए नाले' तेनु नास-3isी वैयरत्नमय छे. वेरुलिया मया बाहिरपत्ता' वैडूय २त्नभय पहा२ना पाना। छ. 'जंबूणयमया अभिंतरपत्ता' पूनमय तेन। २२।। २भएणीय पाना। छ. 'तवणिज्जमया केसरा' तेना श२-५२१ त५. नीय सुपर भय छे. 'कणगामई कणिया' तेनी ४जी नभय छे. 'नाणामणिमया पुक्खरत्थिबुका' तनी स्तिमु भने मणियोनी छे. 'सा णं कण्णिया अद्धजोयणं જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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