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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. ७५ नीलवंतादिहृदनिरूपणम् ____ ४२७ नानामणिमयानि नानामणिमयस्तम्भसंनिविष्टानि विविधमुक्तान्तरोपचितानि विविधतारारूपोपचितानि ईहामृग-ऋषभ-तुरग-नर-मकर-विहग व्याल किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलता-पद्मलता भक्तिचित्राणि स्तम्भोद्गतवज्रवेदिकानि परिगताभिरामाणि विद्याधरयमल-युगल यन्त्रयुक्तानीवाचिः सहस्रमालनीयानि रूपकसहस्रकलितानि दीप्यमानानि देदीप्यमानानि चक्षुर्लोकनलेशानि शुभस्पर्शानि सश्रीकरूपाणि प्रासादिकानि । 'तस्स णं नीलवंतदहस्स णं दहस्स' तस्य नीलवद् इदस्य खलु हृदस्य 'बहुमज्झदेसभाए' बहुमध्यदेशभागे 'एत्थ णं एगे महं पउमे पन्नत्ते' एकं मह द्विशालं पद्मं प्रज्ञप्तम् तत् खलु कमलम्-'जोयणं आयामविक्खंभेणं' योजनमेकमायामविष्कम्भाभ्यामुभाभ्याम् 'तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं' तदायामविष्कम्भापेक्ष्यया त्रिगुणितं सविशेष परिक्षेपेण (प्रदक्षिणवृत्त्या) अद्धजोयणं बाहल्ले णं' योजनार्ध बाहल्येन 'दसजोयणाई उव्वे हेणं' दशयोजनानि उद्वेधेनोच्चत्वेन 'दोकोसे उसिते जलंताओजलान्तात् जलस्थितिदेशतो द्वौ क्रोशौ ऊर्ध्व मुच्छ्रितम् 'साइरेगाई दसद्धजोयअनेक मणिमय हैं अनेक मणियों के स्तम्भों पर ये रखे हुए हैं अनेक प्रकार के भिन्नभीतियों से युक्त हैं । अनेक प्रकार के तारा रूपों से ये सहित हैं इत्यादि रूप से तोरणों का समस्त वर्णन 'प्रासादिक' पद तक कर लेना चाहिये इन समस्त शब्दों का अर्थ पीछे के पाठों में लिखा जा चुका है 'तस्स णं नीलवंतद्दहस्स णं दहस्स बहुमज्झ देसभाए एत्थ णं एगे महं पउमे पण्णत्ते' इस नीलवन्त इद के बहुमध्य भाग में एक विशाल पद्म है 'जोयणं आयामविक्खंभेणं' इस कमल की लम्बाई चौडाई १ योजन की है 'तं तिगुणं सविसेणं परिक्खेवेणं' इस की लंबाई चौडाई से कुछ अधिक तिगुनी हैं 'अद्धजोयणं वाहल्लेणं' मोटाई इसकी आधे योजन की है 'दसजोयणाई उध्वेहेणं' गहराई મણિમય છે. અનેક મણિના સ્તંભ પર તેને ઉભા રાખેલ છે. અનેક પ્રકારની જૂદી જૂદી ભીંતેથી તે યુક્ત છે. અનેક પ્રકારના તારા રૂપોથી તે યુક્ત છે. विगैरे प्र४२थी तोरणेनु सघ १ न 'प्रासादिका' से ५६ सुधि सभ से જોઈએ. એ બધાજ વિશેષણોનો અર્થ પહેલાના પાઠમાં કહેવામાં આવી ગયેલ छ. 'तस्स णं नीलवंतदहस्स बहुमज्झ देसभाए एगे महं पउमे पण्णत्ते' को नीत भागमध्यमाम मे विस ५५ छ. 'जोयणं आयामविक्खंभेणं' से पानीमा भने पहाणा मे योगननी छ. 'ते तिगुणं विक्खंभेणं' मा भवानी परिधि मा पाथी ४४४ पधारे त्रए ५० छ. 'अद्धजोयणं बाहल्लेणं तनी 1315 अर्धा योगननी छ. 'दस जोयणाई उब्बेहेणं' तेनी ४ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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