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________________ ४२४ जीवाभिगमसूत्रे कुरुषु 'नील तणामं दहे पन्नत्ते' नीलवद्हदो नाम हृदः प्रथितः प्रश्नः ? भगवानाह - ' गोयमा ' गौतम ? 'जमगपव्वयाणं' यमकनामपर्वतयोः 'दाहिपेणं' दक्षिणेन चरमान्ताद्दक्षिणाभिमुखम् ' अट्ठचोत्ती से जोयणसते चत्तारि सत्तभागा' अष्टौ चतुस्त्रिंशानि चतुस्त्रिंशदधिकानि योजनशतानि चतुरथ सप्तभागान् 'जोयणस्स अवाहाए' योजनस्याऽबाधयाऽपान्तराले मुक्त्वाऽत्रान्तराले 'सीताए महाणईए' शीताया महानद्याः बहुमज्झदेसभाए' बहुमध्यदेशभागे, 'एत्थ णं उत्तरकुराए कुराए' अत्र खलूत्तरकुरुषु कुरुषु 'नीलवंतदहे णामं दहे' पण्णत्ते' नीलवंत हदो नाम हृदः प्रज्ञप्तः कथितः स च हूदः किं विशिष्ट स्तत्राह 'उत्तरदक्खिणायए' उत्तरदक्षिणायतः उत्तरदक्षिणाभ्यामवयवाभ्यां दीर्घः 'पाईण पडीणविच्छिन्ने' प्राचीन प्रतीचीनविस्तीर्णः पूर्वपश्चिमावयवाभ्यां विस्तीर्णः पृथुल: 'एगं जोयणसहस्सं आया मेणं' एकं योनसहस्रमायामेन दैर्येण 'पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं' पञ्चयोजनशतानि विष्कम्भेण विस्तारेण 'दसजोयणाई उच्वेहेणं दशयोजनान्युद्वेधेन - अन्तरमवगाहनेन, अच्छे सहे रययामए कूले ' अच्छः स्फटिकवन्निर्मल प्रदेशः श्लक्ष्णः चिकण पुल निर्मापित बहिर्भागः भदन्त ! उत्तरकुरु क्षेत्र में नीलवंत नामका हूद कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम! दोनों यमक पर्वतों की दक्षिण दिशा से 'अट्ठ चौती से जोयणसये चत्तारि सत्तभागे' ८३४३ योजन दूर सीता महानदी के बहुमध्य देश में उत्तरकुरु का नीलवन्त नामका इद कहा गया है 'उत्तरदक्खिणायए पाइणपडीणविच्छिण्णे' यह उत्तर दक्षिण तक लम्बा है और पूर्व-पश्चिम तक चौडा है 'एक्कं जोयणसहस्सं आयामेणं पंचजोयणसयाई विक्खंभेणं दसजोयणाई उच्चहेणं अच्छे सहे रययामए कूले' यह एक हजार योजन का लम्बा और पांच सौ योजन का चौडा है एवं १० योजन का गहरा है आकाश और स्फटिक मणि के जैसा निर्मल है चिकना है इसके किनारे चांदी के वने કુરૂક્ષેત્રમાં નીલવંત નામનું હ્રદ કયાં આગળ આવેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ ! અને યમક પતાની દક્ષિણ દિશાથી ‘g चोत्तीसे जोयणसए चत्तारिसत्तभागे' ८३४ है आसो यात्रीस सातिया यार યેાજન દૂર સીતા નામની મહા નદી બહુમધ્ય દેશભાગમાં ઉત્તરકુરૂનું નીલ. पंत नाम कुछ डेस छे. 'उत्तर दक्खिणायए पाईण पडीणविच्छिन्ने' से उत्तर दक्षिण सुधी सांगु छे भने पूर्व पश्चिम सुधी होणु छे. 'एक्के जोयणसहस्सं आया मिणं पंच जोयणसयाई विक्खंभेणं दस जोयणाई उव्वेहेणं अच्छे सहे रययामएकूले' से मे४ डलर योजनांमने पांयसो योजन પહેાળુ છે, અને ૧૦ દસ યેાજન ઉડુ છે, આકાશ અને સ્ફટિક મણિના જેવું જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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