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________________ ३८६ जीवाभिगमसूत्रे समुद्रं स्पृष्टवन्तः ततो व्यपदेशचिन्तायां किं ते प्रदेशाः जम्बुद्वीपो लवणससमुद्रो वेतिसंशयः तत्र भगवानाह - 'गोयमा' ! हे गौतम ! 'जंबुद्दीवे दीवे नो खलु ते लवणसमुद्दे' जम्बूद्वीपो द्वीपः न खलु ते लवणसमुद्रः जम्बुद्वीपचरमप्रदेशा जम्बुद्वीप एव समीपतित्वात् । न खलु ते जम्बू द्वीप चरमप्रदेशाः लवणसमुद्रः न ते प्रदेशाः जम्बूद्वीपसीमान्तर्गताः सन्त एव लवणसमुद्रं स्पृष्टवन्तः इति तटस्थतया संस्पर्शभावात् तर्जन्यारपृष्टा ज्येष्ठाङ्गुलिरिव ते प्रदेशाः जम्बुद्वीप व्यपदेशं भजन्ते, नतु-व्यपदेशान्तरम् । अतस्ते प्रदेशा जम्बूद्वीप एव, न लवणसमुद्रः इति । 'लवणस्स णं भंते ! समुदस्स'-लवणस्य खलु भदन्त ! समुद्रस्य, 'पएसा जंबुद्दीवं दीवं पुट्ठा' प्रदेशाः स्वसीमान्त चरमप्रदेशाः किं जम्बुद्वीपं स्पृष्टाः स्पृष्टवन्तः ? इहापि काक्वा प्रश्न:-स्पृष्टा वा न वा। भगवानाह-'हंता' इत्यादि, 'हंता पुट्टा' हन्त गौतम ! लरणसमुद्रस्य स्वसीमावतिनो ये चरमप्रदेशा स्ते जम्बुद्वीपं स्पृष्टवन्त एव । पुनः श्रीगौतमस्वामी भगवन्तं प्रश्नयनाह-'ते गं भंते !' ते खलु प्रदेशा लवणसमुद्रस्य, 'किं लवणसमुद्देणं जंबुद्दीवे दीवे' ते प्रदेशा किं लवणसमुद्रो जम्बुद्वीपो वा जम्बुद्वीपस्पृष्टानां लवणसमुद्रप्रदेशानां लवण छुए हुए हैं अतः वे प्रदेश जम्बूद्वीप रूप हैं या लवण समुद्र रूप है इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! जम्बूद्दीवे दीवे नो खलु तेलवण समुद्दे' हे गौतम ! वे प्रदेश जम्बूद्वीप रूप ही हैं लवण समुद्र रूप नहीं हैं 'लवणसमुदस्स णं भंते ! समुदस्स पएसा जम्बुद्दीवं पुढा' हे भदन्त लवण समुद्र के प्रदेश जंबूद्वीप को स्पृष्ट किये हुए हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं 'हत्ता' पुट्ठा' हां, गौतम ! लवण समुद्र के प्रदेश जम्बूद्वीप को छुए हुए हैं। 'ते णं भंते ! किं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवे दीवे' हे भदन्त ! वे प्रदेश क्या लवणसमुद्र रूप हैं या जंबुद्वीप रूप हैं ? तात्पर्य यही है कि लवण समुद्र के चरम प्रदेश जंबुद्धीप से संस्पृष्ट है तो भी वे लवण समुद्र रूप ही है जम्बूद्वीप रूप नहीं हैं। તેથી તે પ્રદેશ અંબુદ્વીપ રૂપ જ છે ? કે લવણ સમુદ્રરૂપ છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रमुश्री हे छ -'गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे नो खलु ते लवणसमुद्दे' गौतम ! से प्रदेश पुदी५ ३५०४ छे. २१ समुद्र ३५ नथी. 'लवण समुहस्स णं भंते ! समुदस्स पएसा जंबुद्दीवं पुदा' लावन् वा समुद्रना प्रदेश। शु द्धीपने २५शेद छ ? २मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४९ छ -'हंता पुद्रा' । गौतम ! Ajसमुद्रन प्रहे। दीपने २५शेयर छ. 'तेणं भंते ! किं लवणसमुद्दे जंबुद्दीवे दीवे' 3 लगवन् ते प्रदेश। शुसा समुद्र ३५ छ ? 3 જંબુદ્વીપ રૂપ છે? આ પ્રશ્નનું તાત્પર્ય એજ છે કે-લવણુ સમુદ્રના ચરમ પ્રદેશ જંબુદ્વીપથી સ્પર્શાવેલ છે. તે પણ તે લવણ સમુદ્ર રૂપજ છે. જંબૂ જીવાભિગમસૂત્રા
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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