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________________ ३८० जीवाभिगमसूत्रे नानां सहस्राणि 'जंबुद्दीवपच्चत्थिमपेरंते' जम्बूद्वीपस्य पश्चिमपर्यन्ते, 'लवणसमुद्दपच्चत्थिमद्धस्स पुरथिमेणं' लवण समुद्रपश्चिमार्धस्य पूर्वस्यां दिशि, 'सीयोदाए महाणईए' शीतोदकायाः महानद्याः 'उप्पि' ऊर्ध्वम् , 'एस्थ णं जंबुद्दीवस्स जथं ते णाम दारे पण्णत्ते' अत्र स्थाने जम्बूद्वीपस्य जयन्तं नाम तृतीयं द्वारं प्रज्ञसम् इति । 'तं चेव से पमाणं' तदेव तत्प्रमाणम् विजयद्वारप्रमाणतोऽत्रापि जयन्तद्वारस्य वर्णनम् । 'जयंते देवे पच्चत्थिमेणं से रायहाणी जाव महड्रिए' जयन्तो देवः पश्चिमेन सा राजधानी यावद् महद्धिकः ॥ 'कहि णं भंते जंबुद्दीवस्स देवस्स अपराइए णामं दारे पण्णत्ते' कुत्र खलु भदन्त ! जम्बूद्वीपस्य खलु द्वीपस्या-ऽपराजितं नाम द्वारं प्रज्ञप्तम् इतिप्रश्न: भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं पणयालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए' मन्दरस्य पर्वतस्योत्तरस्यां पञ्चचत्वारिंशद् योजनानां सहस्साई' ४५ हजार योजन जाने पर 'जंबुद्दीव पच्चस्थिम पेरते' उस जम्बूद्वीप की पश्चिम दिशा के अन्त में 'लवणसमुद्द पच्चत्थि मद्धस्स पुरथिमेणं' लवण समुद्र के पश्चिमा की पूर्व दिशा में 'सीयोदाए' महाणईए' सीतोदा महानदी के 'उम्पि' ऊपर 'एत्थ णं जंबूद्दीवस्स जयंते नामं दारे पण्णत्ते' जम्बूद्वीप का जयन्त नाम का तृतीय द्वार है 'तं चेव से पमाणं' इसके प्रमाण आदि का सव वर्णन विजयद्वार के वर्णन जैसा ही है ऐसा जानना चाहिये 'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवस्स अपराइए णामं दारे पण्णते' हे भदन्त ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप का अपराजित नामका द्वार कहां पर कहा गया है उत्तर में प्रभु कहते है 'गोयमा ! मंदस्स उत्तरेणं पणयालीस जोयणसहस्साइं अबाहाए' हे गौतम जंयूद्वीप के मेरुपर्वत से ४५ हजार योजन आगे जाने पर थिमपेरंते' से दीपनी पश्चिम दिशा मनाम 'लवणसमुह पच्चत्थिमद्धस्स पुरथिमेणं' सवा समुद्रन पश्चिमानी पूर्व दिशामा “सीओदाए महाणदीए' सीतोही मानहाना 'उप्पि' ७५२ 'एत्थ णं जंबुद्दीवस्स जयंते णामं दारे पग्णत्ते' पूदीनु यत नामनु त्री दा२ छ. 'तं चैव से पमाणं' तेनु પ્રમાણ વિગેરે તમામ પ્રકારનું કથન વિજય દ્વારના કથન પ્રમાણે જ છે તેમ समन्यु". 'कहि ण भंते ! जंबुद्दीवस्स अपराइए णाम दारे पण्णते' है मापन જંબુદ્વિપ નામના દ્વીપનું અપરાજીત નામનું ચોથું દ્વાર કયાં આગળ કહેવામાં मावेश छ ? २॥ प्रश्नना उत्तम प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा ! मंदरस्स उत्तरे णं पणयालीस जोयण सहस्साई अवाहाए' है गौतम ! दीपभा मावेश भे३ पतिथी ४५ पिस्तालीस २ यो- माग पाथी 'जंबुद्दीवे उत्तरपेरंते' જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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