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________________ ३४८ जीवाभिगमसूत्रे कुर्वन् पूर्वदिग्द्वारेणाऽनुप्रविशति, 'अणुपविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूव गएणं पच्चोरुहति' अनुप्रविश्य पूर्वेण त्रिसोपानप्रतिरूपकेण प्रत्यवरोहति-नन्दां प्रविशति, 'पचोरुहेत्ता नन्दा प्रत्यवरुह्य-अन्तः प्रविश्य, 'हत्थं पादं पक्खालेति' हस्तौ पादौ प्रक्षालयति नन्दाजलेन, 'हत्थं पादं पक्खालेत्ता' हस्तौ पादौ प्रक्षाल्य, एगं महं सेतं रयतामयं-विमलसलिल पुण्णं' एकं महत् श्वेतं अतएव-रजतमयं विमलसलिलपूर्ण व्यपगतसकलमलजलपूर्णम् , 'मत्तगयमुहाकिति समाणं' मत्तगजमुखाकृतिसमानम् मदमत्तवारणमुखाकृति, 'भिंगारं पगेण्हति' भृङ्गारं विशिष्टं जलपात्रं प्रगृह्णाति, भिंगारं पगेण्हित्ता' भृङ्गारं प्रगृह्य, जाइ तत्थ उप्पलाई पउमाइं जाव सयसहस्सपताइं ताइं गेण्हइ' यानि तत्रोत्पलानि पद्मानि कुमुदानि यावत्-पुण्डरीकाणि महापुण्डरीकाणि शतसहस्रपत्राणि तानि सर्वाणि पुष्पाणि गृह्णाति, 'ताई गेण्हेत्ता नंदातो पुक्खरिणितो पच्चुत्तरेइ' नन्दापुष्करिणीतो बहिनि'अणुपविसित्ता' प्रविष्ट होकर 'अणुपविसित्ता' पुष्करिणी में प्रविष्ट होकर 'पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवगएण पच्चोरुहइ' वह उसकी त्रिसोपान पंक्ति से उतर कर उसमें प्रविष्ट हुवा 'पच्चोरुहित्ता हत्थपादं पक्खालेति' प्रवेश करके हाथों और पैरों को धोया 'पक्खालित्ता एगं महं सेतं रयणामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगय महा कित्तिसमाणं भिंगारं पगिण्हति' हाथ पैरों को धोकर उसने चांदी की बनी हुई एक विमल जल से परिपूर्ण शृंगार-झारी को उठाया जिसके मुह की आकृति मदोन्मत्त गजराजके शुण्डादण्ड जैसी थी 'भिंगार पगेण्हित्ता जाइं तत्थ उप्पलाईपउमाइं जाव सयसहस्सपत्ताइं ताई गिण्हति' भृगार उठाने के बाद फिर उसने जितने भी वहां उत्पल पद्म यावत् शतसहस्र पत्तों वाले कमल थे उन सब को ले लिया 'गिण्हित्ता गंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरेइ' लेकर फिर वह गंदा ६शाना ४२वाले धन तमा प्रवेश ४ो. 'अणुपविसित्ता' प्रवेश ४शन 'पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवगएणं पच्चोरुहइ' ते तेनी त्रिसापान पतिथी उतरीन तभा प्रवेश श्यो. 'पच्चोरुहित्ता हत्थपादं पक्खाले ति' तेमा प्रवेश शन तेणे पोताना डाय ५॥ पाया. 'पक्खालित्ता एग महं सेत्तं रययामयं विमलसलिलपुण्णं मत्तगय महाकित्तिसमाणं भिंगार पगिण्हइ' डाय ५॥ घोधन तेणे याहीनी मनेस से નિર્મળ જળથી ભરેલ ઝારી ઉઠાવી કે જેનું મુખ મન્મત્ત હાથીની સૂંઢ रेवु तु. भिंगार गेण्हित्ता जाइं तत्थ उप्पलाइं पउमाइं जाव सयसहस्सपत्ताई ताई गिण्हंति' आरी सीn पछी तेथे त्यां22 Gual, ५ो यावत् शत पत्र, सखपत्र वा भो हुताते याने सीधा. 'गिण्हित्ता गंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरेइ' ते ४ने ते न। धुरिणीयोमाथी मडा नीजयो. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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