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________________ ३४२ जीवाभिगमसूत्रे 'तुडियाई' त्रुटितानि-बाहुरक्षकाः हस्ताभरणाः 'अंगयाई' अङ्गदानि-बाताभरणविशेषाः 'केउराई' केयूराणि, 'दसमुदिताणंतकं' दशमुद्रिकानन्तकं हस्ताङ्गुलिस म्बन्धि मुद्रिकादशकम् 'कडिसुत्तकं' कटिसूत्रकम् 'ते अस्थिसुत्तकं' व्यस्थि सूत्रकम् 'मुरवि-कंठमुरवि-मुखीं-कण्ठमुखीम्-आभरणविशेषौ, 'पालंवसि'-प्रालम्बं, तपनीयमयः विचित्रमणिरत्नभक्तिचित्रात्मनः प्रमाणेन स्वप्रमाणः आभरणविशेषः । 'कुंडलाई'-कुण्डले-करणाभरणे, 'चूडामणि'-चूडामणिः, तत्र चूडामणिर्नामसकलपार्थिव-रत्नसर्वसारः देवेन्द्रमनुष्येन्द्रशिरः कृतनिवासः निःशेषाऽपमङ्गल शान्तिरोगप्रमुखदोषापहारकारी प्रवरलक्षणोपेतः प्रवरमङ्गलभूतआभरणविशेषः, माला को 'कडगाई' कटकों को कलाई के आभरणों को 'तुडियाई त्रुटितों को-बाहुरक्षकों को 'अंगयाई' अंगदों को-बाहु के विशेषों को 'केयूराइं' केयूरों को 'दसमुदितागंतक' १० मुद्रिकाओं को अंगूठियों को 'कडिसुत्तयं' कटिसूत्र को-करधोनी को 'ते अत्थिसुत्तकं' व्यस्थि सूत्र को 'मुरविं' कंठ मुरवि को 'पलंबसि' प्रालम्बक को-तपनीय सुवर्ण के बने हुए विचित्र मणियों के चित्रों से विचित्र तथा पहिरने वाले के बरावर जो आभरण विशेष होता है उसका नाम मालम्बक हैं ऐसे प्रालम्बक रूप आभरण विशेष को 'कुंडलाई कानों में कुण्डलों को 'चूडामणि' शिरोरत्न को यह रत्न सब पार्थिव रत्नों में सारभूत माना गया है, इन्द्र और चक्रवर्ती के मस्तक पर यह धारण किया जाता है। समस्त अमंगलों का एवं रोगों का और दोषों का यह विनाशक होता है तथा सुन्दर लक्षणों से यह युक्त होता है, ऐसा यह मङ्गल भूत आभरण विशेष होता है। ऐसे आभरण माई २क्षीने 'अंगयाई' महीने अर्थात् ४in माभूषण विशेषने 'केयराइं यूरो। 'दसमुदियाणंतकं' १० इस मुद्रिा-वीटीयाने 'कडिसुत्तय' पटिसूत्र ४४राने 'ते अत्थिसुत्तकं' यस्थिसूत्रने 'मुरवि' भु२वीन 'पालबसिं' પ્રાલંબકને એટલે કે–તપનીય સેનાના બનેલ વિચિત્ર મણિના ચિત્રથી ચિતરેલ તથા પહેરવાવાળાની બબરનું જે આભૂષણ વિશેષ હોય છે. तेनु नाम प्रारम छे. सेवा प्रारमने 'कुंडलाइं' नमानसोने 'चडा િમાથાના રત્નને આ મસ્તકનું આભૂષણ પાર્થિવ રત્નમાં સાર રૂપ માનવામાં આવેલ છે. અને તે ઈન્દ્ર અને ચકવતિ રાજાના મસ્તક પર ધારણ કરાવવામાં આવે છે. એ સઘળા અમંગલેનું તથા સઘળા રંગનું અને સઘળા દોષનું વિનાશક હોય છે. તથા સુંદર લક્ષણથી એ યુક્ત હોય છે. આવું એ से भी ३५ माभूषा विशेष छ. २मा माभूषा विशेषने तथा 'चित्तरयणु જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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