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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६७ विजयदेवस्य कामदेवप्रतिमापूजनम् ३३९ सनवरगतः पूर्वाऽभिमुखः सन्निषण्णः सदुपविष्टः 'तए णं तस्स विजयस्स देवस्स' ततः सिंहासने-उचितोपवेशनाऽनन्तरं खलु तस्य विजयदेवस्य, 'सामाणियपरिसोववण्णगा देवा आभिणि भोगिए देवे सदावेंति' सामानिकपर्षदुपपन्नका देवा आभियोगिकान् देवान् शब्दायन्ते-आह्वयन्ति । 'सदावेत्ता एवं वयासी' शब्दयित्वा एवं वक्ष्यमाणं वचोऽवादिषुः-'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया' भो-भोः ? देवाऽनुप्रियाः शीघ्रं यथा तथा-'विजयस्स देवस्स अलंकारियं भंडं उवणेह' विजय देवस्य हेतो रलङ्कारिक भाण्ड मुपनयत, 'तेणेव ते अलंकारियं भंडं जाव उवट्ठवेंति' ते-आभियोगिकाः आज्ञासमनन्तरं तत्रैव तदैव तदेवाऽऽलंकारिकं भाण्ड मुपस्थापयन्ति, 'तए णं से विजए देवे' ततः खलु स विजयोदेवः-'तप्पढमयाए' तत्प्रथमतया तस्यामलङ्कारसभायां प्रथमतएव-'पम्हलसुकुमालाए' पक्ष्मलमुकुमारया-पक्ष्मला च मुकुमाराचेति पक्ष्मलमुकुमारा तया पक्ष्मलयुक्तया सदावे ति' इस के बाद उस विजयदेव के सामानिक देवों ने अभिनियोगिक देवों को बुलाया 'सदावेत्ता एवं वयासी' बुला कर उन्होंने उन से ऐसा कहा 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ।' हे देवानुप्रियो! तुम सब बहुत ही जल्दी 'विजयस्त देवस्स अलंकारियं भाण्डं उवणेह' विजयदेव के निमित्त अलंकारिक भाण्ड को ले आओ 'तेणेव ते अलंकारियं भंडं जाव उवट्ठति' इस प्रकार की सामानिक देवों की बात को स्वीकार कर वे आभियोगिकदेव वहां पर उसी समय उस अलंकारिक भाण्ड को ले आये 'तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसुकुमालाए' इसके बाद सब से पहिले उस अलंकारिक सभा में विजयदेव ने रोमवाली एवं सुकुमार तथा 'दिव्वाए सुरभीए' दिव्य और सुगंधित 'गंधकासाईए' तथा सुगंध युक्त कषाय द्रव्य से परिसोववण्णगा देवा आभिणिओगिए देवे सदावें ति' ते पछी ते १४य देवना सामा. निवास, मामिनियोगि हेवाने मोसाव्या. 'सदावेत्ता एवं वयासी' मोसावीन तमास तेमने मा प्रमाणे ४यु 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया' हे देवानुप्रियो तमे ॥ २४४म दिEथी 'विजयस्स देवस्स अलंकारियं भांडे उवणेह' विनय हर मटि PRA२४ मांडाने समावो. 'तेणेव ते अलंकारियं भंड जाव उव टवेति' २मा प्रमाणेनी सामानि वानी माज्ञाने। स्वी२ ४ीन ते मलियायोगि । मेरी समये २६२४ मांडाने त्यांच्या 'तएणं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसुकुमालाए' ते ५छी सौथी पहुसां से PA२४ सभामा विश्यवे रामवासी मने सुभा२ तथा 'दिव्वाए सुरभीए' हिव्य भने सुगघि वाणा मेवा 'गंधकासाईए' ४ाय द्रव्याथी मनावामां मावस वाथी विशेष જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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