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________________ ३३८ जीवाभिगमसूत्रे 'अब्भुटेत्ता' अभ्युत्थाय सिंहासनात्-‘अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिणिक्खमइ' अभिषेकसभातः पूर्वद्वारेण प्रतिनिष्क्रामति, 'पडिणिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्याऽभिषेकसभातः-'जेणामेव-अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ' यत्रै वालङ्कारिकसभा तत्रैवोपागच्छति, 'तेणेव उवागच्छित्ता' तत्रैवाऽलङ्कारिकसभाया मुपागत्य, 'अलंकारियसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे' अलङ्कारिकसभामनुप्रदक्षिणीकुर्वन् २ 'पुरस्थिमेणं दारेणं अणुप्पविसई'-पूर्व दिग्द्वारेणालङ्करिकसभा मनुप्रविशति'पुरस्थिमेणं दारेणं अणुपविसित्ता' पूर्वद्वारेणानु प्रविश्य, 'जेणेव सीहासणे तेणेवउवागच्छति' यत्रैव सिंहासनं तत्रैवोपागच्छति, 'तेणेव उवागच्छित्ता'-तत्रैव सिंहासनसंनिधाने-उपागत्य, 'सीहासणवरगते पुरत्याभिमुहे सण्णिसण्णे' सिंहाअभिषेक सभा से पूर्व के द्वार से बाहर होकर निकला 'पडिणिक्खमित्ता जेणामेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ' और बाहर निकल कर वह जहां अलङ्कारिक सभा थी वहां पर आया 'तेणेव उवागच्छिता' वहां आकर के वह 'अलंकारिय सभं अणुप्पयाहिणी करेमाणे' उसने उस अलङ्कारिक सभा की प्रदक्षिणा की और प्रदक्षिणा करके फिर वह 'पुरथिमेणं दारेणं अणुपविसई' पूर्व के द्वार से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ 'पुरस्थिमेणं दारेणं अणुपविसित्ता' पूर्व के द्वार से होकर जब वह प्रविष्ट हुआ तो वह फिर 'जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ वहां गया जहां कि सिंहासन था। 'तेणेव उवागच्छित्ता' वहां जाकर वह 'पुरस्थाभिमुहे' पूर्वदिशा की और मुह करके 'सीहासण वरगए सन्निसणे' उस श्रेष्ठ सिंहासन के ऊपर बैठ गया 'तएणं तस्स विजयदेवस्स सामाणिय परिसोववण्णगा देवा आभिणिओगिए देवे पुरथिमेणं दारेणं पडिणिक्खमइ' मनिष समाना पूर्व दिशाना ४२वार यधन पार नीन्या. 'पडिणिक्खमित्ता जेणामेव अलंकारिय सभा तेणेव उवागच्छई' महा२ नीजीन ते यi PRE४.२४ समा ती त्यां 11 माव्या. 'तेणेव उवागच्छित्ता' त्या भावीन ते 'अलंकारियसभं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे तेरे से म २४ समानी प्रक्षि। ४३१. अने प्रक्षिशन ते पछी ते 'पुरस्थिमेणं दारेणं अणुप्पविसई' पूर्व ६शानाद्वारेथी तमा प्रवेश प्रो. पुरथिमेणं दारेणं अणुपविसित्ता' पूर्व वारथी तेमा प्रवेश परीने ते पछी ते जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छई' या सिंहासन हेतु त्यां गया. 'तेणेव उवागच्छित्ता' त्यां धनते 'पूरमुहे' पूर्व दिशानी त२३ भु५ मीने 'सीहासणवरगए सन्निसण्णे' स श्रेष्ठ सिहासन ५२ ते मेसी गया 'तए णं तस्स विजयदेवस्स सामाणिय જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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