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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६६ विजयदेवाभिषेकवर्णनम् ३२९ सौवर्णिकानां कलशानाम्, 'तं चेव अट्टसएणं भोमेज्जाणं कलसाणं'-तदेवअस्मिन् एव सूत्रेऽमूषां सामग्रीणां समुपस्थापनसमये यद् यद् यथाकथितं-तत्तथैव यावत् अष्टशतेन भौमेयानां कलशानाम्, 'सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं'-सौंदकैः-सर्वतीर्थजलैः सर्वमृतिकाभिः, 'सव्वतूवरे हिं सव्वपुप्फेहिं जाव सव्वोसहि सिद्धत्थएहि'-सर्वर्तुवरैः सर्व ऋतुषु जातैः सर्व पुष्पैः नन्दनादि वनानीतैः सर्वमाल्यैः चूर्णादिभिः यावत्-सौषधिभिः सर्व र्थसिद्धकैश्च, 'सव्वडीए जाव निग्धोस नाइयरवेणं' सर्वऋद्धया-सर्वद्युत्या यावत् -निर्घोषनादितरवेणै, 'महया महया इंदाभिसेएण' अभिसिंचइ' -महता महता-इन्द्राभिषेकेण तं विजयं देवमभिषिश्वन्ति इति । 'पत्तेयं पत्तेयं सिरसावत्तं अंजलिं कटु एवं वयासी'-प्रत्येकं प्रत्येक सामानिकादयो देवाः शिरसावर्त करतलपरिगृहीतभञ्जलिं कृत्वा-एवं वक्ष्यकलशों के 'तं चेव जाव अट्टसएणं भोमेज्जाणं कलसाणं' पूर्वोक्तानुसार यावत १०८ मृत्तिका के कलशों के 'सव्वोदएहिं सव्वमटियाहिं' समस्त उदकों से और समात मिहियों से 'सव्वतूवरेहिं सवपुप्फेहि जाव सव्वोसहिसिद्धत्थएहिं' एवं समस्त ऋतुओं के श्रेष्ठ समस्त पुष्पों से यावत् सवौं षधियों से और पीत सर्षपों से 'सचडीए जाव निग्योसनाइयरवेणं' सर्वऋद्धि के अनुसार सर्वद्युति के अनुसार यावत् वाजों के गडगडाहट के साथ२ महया महया इंदाभिसेएणं' वडे भारी उत्सव से युक्त उस इन्द्राभिषेक की सामग्री से 'तं विजयदेवं अभिसिंचति' उस विजय देव का अभिषेक किया 'पत्तेयं पत्तेय सिरसावत्तं अंजलिकटु एवं वयासी' और फिर अलग अलग रूप से दोनों हाथों की अंजलि करके और उसे शिर पर घुमाकर आशीर्वाद के रूप में उससे साणं' यावत् १०८ २४ मा सुवर्ण ना यम४४.२ ४साथी 'तं चेव जाव अट्रसएणं भोमेज्जाणं' कलसाणं' पडसा उपामा २ाच्या प्रमाणे यावत् १०८ से सोने मा भाटीन। सशथी. 'सव्वोदएहिं सव्वमट्टियाहिं' सवा तीन थी भने सधणी नहीसा मन सा तीर्थानी माटीथी 'सव्वतूवरेहिं सव्वपुप्फेहि जाव सव्वोसहि सिद्धत्थएहिं' तथा सघजी तुमोना उत्तम उत्तम समस्त पुण्याथी यावत सविधियोथी तभ० पी॥ २ ॥ सप पाथी 'सव्वढीए जाव निग्योसनाइयरवेणं' स प्रा२नी द्धि अनुसा२ सवधुति अनुसार यावत् वामाना 12वाणी हिव्य चनीयानी साथे साथे 'महया महया इंदाभिसेएणं' घा मोटा सेवा उत्सव पूर्व से निषेनी समय सामग्रीथी 'तं विजय देवं अभिसिंचंति' से विश्य हेवन। अभिषे ४ये 'पत्तेयं पत्तेयं सिरसावत्तं अंजलि कटु एवं वयासी' भने ते पछी दूी ही शते गन्ने हायानी Aarel
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જીવાભિગમસૂત્ર