SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६६ विजयदेवाभिषेकवर्णनम् ३२७ करें ति- अप्येकका देवाः देवोद्योतं विद्युतं चैलोत्क्षेपं च कुर्वन्ति । 'अप्पेगइया देवा उप्पलहत्थगता जाव सहस्सपत्तहत्थगता'-अप्येकका देवाः उत्पलहस्तगताः कुमुदहस्तगताः शतपत्रहस्तगताः सहस्रपत्रहस्तगताः, 'घंटाहत्थगता कलसहत्थगता जाव धूवकडुच्छहत्थगता'-घण्टाहस्तगताः कल शहस्तगताः यावत्-धूपकडुच्छुकहस्तगताः, यावत्पदेन भृङ्गारादर्श स्थालपात्रीसुप्रतिष्ठक वातकरक चित्ररत्न करण्डपुष्पचंगेरी, यावल्लोभहस्तचंगेरी पुष्पपटलकयावल्लोमहस्तपटलक सिंहासनचामरतैलसमुद्क यावदञ्जनसमुद्गकधूपकडुच्छुकहस्तगताः 'हहतुट्टा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया'- हृष्ट तुष्टाः-प्रमोदिताः हर्षवशविसर्पदहृदयाः 'विजकिया, विजलिया भी चमकाई और हवा में वस्त्रों को भी फहराया 'अप्पेगइया देवा उप्पलहत्थगता जाव सहस्सपत्तहत्थगता' कितनेक देवों ने उस समय कमलों को हाथ में ले रक्खा था, कितनेक देवों ने यावत् सहस्र पत्र वाले कमलों को हाथ में ले रक्खा था 'घंटाहत्थगता कलसहत्थगता जाव धूवकडुच्छुकहत्थगता' कितनेक देवों ने घंटा को हाथ में ले रक्खा था, कितनेक देवताओं ने कलशों को हाथ में ले रक्खा था कितनेक देवताओं ने धूप के कडछे को हाथ में ले रक्खा था यहां अन्त के यावत्पद से भृङ्गार, आदर्श, स्थाल, पात्री, सुप्रतिष्ठक, वातकरक, चित्र, रत्नकरण्ड पुष्पचंगेरी यावल्लोमहस्त चंगेरी पुष्पपटलक यावत् लोमहस्तपटलकसिंहासन, चामर, तेलसमुद्गक यावत् अंजन समुद्गक और धूपकडूच्छुक' इन सब का ग्रहण हुआ है 'हट्टतुट्ठ जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया' इस प्रकार से वे सबके सब देव हष्ट, ५४ यभावी, मने पामा वस्त्रो ५४ ३२४च्या. 'अप्पेगइया देवा उप्पलहत्थ गता जाव सहस्सपत्तहत्थगता' मा हेवाये २ समये ४भा डायमा अड કર્યા હતા, કેટલાક દેએ યાવત્ સહસપત્રો વાળા કમળને હાથમાં ધારણ ४. ता. 'घंटाहत्थगता कलसहत्थगता जाव धूवकडुच्छहत्थगता' मा हेवाये ઘંટાઓ હાથમાં લીધા હતા. કેટલાક દેએ કલશો હાથમાં ગ્રહણ કર્યા હતા. કેટલાક દેઓએ ધૂપદાનીને હાથમાં ધારણ કરી રાખેલ હતી. અહીંયા સૂત્રના અંતમાં આવેલ યાત્પથી ભંગાર, આદર્શ, સ્થાલ, પાત્રી, સુપ્રતિષ્ઠક વાતકરક, ચિત્ર, રત્નકરંડક, પુષચંગેરી, યાવત્ લામહસ્તચંગેરી, પુષ્પપટલક, થાવત્ લમસ્ત પટલક, સિંહાસન, ચામર, તેલસમુદ્ગક યાવત્ અંજન समु४. मने धू५४२-७४ २॥ ५५ो अड६ ४२।। छ. 'हतुटु जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया' २॥ रीत तेसो सभा हे। हष्ट, तुष्ट, यावत् જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy