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________________ ३२४ जीवाभिगमसूत्रे तंति'-अपि केचन देवा उत्पतन्ति-ऊर्ध्वं गच्छन्ति, 'अप्पेगइया देवा णिवयंति'अप्येककाः देवा केचन निपतन्ति-नीचैर्गच्छन्ति, 'अप्पेगइया देवापरिवयंति' अप्ये. कका देवाः परिपतन्ति 'अप्पेगइया देवा उप्पयंति-णिवयंति-परिवयंति'-'अप्येकका देवा उत्पतन्ति-निपतन्ति-परिपतन्ति, उत्पत नादित्रयं कुर्वन्तीत्यर्थः । 'अप्पेगइया देवा जलेंति'-अप्येककाः देवाः ज्वलन्ति ज्वालामालाकुलाभवन्ति, 'अप्पेगइया देवा तवंति'-अप्येकका:-देवास्तपन्ति ताप-तप्ता भवन्ति, 'अप्पेगइया देवा पतवेंति'अपि केचन देवाः प्रापन्ति-सातिशयं तप्ता भवन्ति, 'अप्पेगइया देवा जलेति तवंति नेक देवों ने उस समय आपस में एक दूसरे देवों के नामो को सुनाना प्रारम्भ किया अप्पेगइया देवा हकारेंति, बुक्कारेति,थुक्कारेंति' कितनेक देवों ने उस समय हक्कार करना बुक्कार करना और थुक्कार करना ये तीनों काम करना प्रारम्भ किया तथा 'नामाइंसावेंति' नामों को सुनाना भी शुरुकिया 'अप्पेगइया देवा उप्पतंति' कितनेकदेवों ने उस समय उछल कूद करना प्रारम्भ किया तो 'अप्पेगइया णिवयंति' कितनेक देवों ने जमीन ऊपर लोट पोट करना प्रारम्भ किया ‘अप्पेगइया देवा परिवयंति' कितनेक देव उस समय परिपतन करना प्रारम्भ किया 'अप्पे गइया देवा उप्पयंति, णिवयंति, परिवयंति' कितनेकदेवों ने उस समय ये तीनों काम करना भी प्रारम्भ किये वे ऊपर की ओर उछले भी, जमीन पर लौटे भी और इधर उधर फिरकर गिरे भी 'अप्पेगइया देवा जलेंति' कितनेकदेवों ने उस समय ऐसा तमासा बताया कि मानों वे अग्नि की ज्वाला से ही आकूल व्याकूल हो रहे हैं 'अप्पेगइया देवा * मी वाना नामी समाधान प्रा२॥ यो 'अप्पेगइया देवा हक्कारें ति वक्कारेंति थुक्कारेति मा वामे को समये ४४।२ ४२वानुमु१२ ४२वानु भने थु४४।२ ४२वानुमे त्रणे ४२वान प्रारमध्य तथा 'नामाइं सावेति' नाम। समाववानी ५ २३२मात ४२री. 'अप्पेगइया देवा उप्पतंति' मा हेवाये से पणते ७७ ४ ४२वान प्रारम ज्यो. तो 'अप्पेगइया णिवयंति' ॐटसा हेवाय मीन ५२ माणसवान प्रारम - 'अपेगइया देवा परिवयंति' मा हे। ते मते परिपतन ४२१८ साल्या अर्थात् १४२ शशन ५७वा साया. 'अप्पेगइया देवा उप्पयंति णिवयंति परिवयंति' मा हवाले से समये ५२नी त२३ वा पण લાગ્યા જમીન પર આળોટવા પણ લાગ્યા. અને આમતેમ કુદરડી ફરીને ५७ ५५ साया. ओम त्र ४२थी तमासामा ४२ता उता. 'अप्पेगइया देवा जलेति' मा वो ॥ पाते थे। मेस मावा साया नये तसो मानिनी पालामाथी या व्याप थ६ २ह्या छ. 'अप्पेगइया જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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