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________________ जीवाभिगमसूत्रे ककाः केचन देवाः भसोलनामकं नाटयविधिन्दर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा'-अपि एके देवाः-'अरभडभसोल नाम दिव्वं नट्टविहिं उवदंसेंति'-आरभट भसोलनाम दिव्यं नाटयविधि मुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा' -अप्येकका देवाः-उप्पायनिवाय पवुतं'-उत्पातः उत्पतनं, निपातोऽधः पतनं तत्प्रयुक्तम्, 'संकुचियपसारिय'-संकुचितप्रसारितम्, 'रियारियं'- गमनागमम् ‘भंत-संभंत'-भ्रान्त सम्भ्रान्तम् एतनामकम्, 'दिव्यं णट्टविहिं उवदंसेंति'-दिव्यं-सुरलोकोचितं नाटयविधिमुपदर्शयन्ति । 'अप्पेगइया देवा चउन्विहं वातियं वादेंति'-अप्येकका देवाः-चतुष्प्रकारक वाद्यमातोद्यादिकं वादयन्ति-वाद्यभेदान् दर्शयति-तं जहा' इत्यादि-तद्यथा-'ततंविततं-घणं-झुसिरं' तत वितत धन शुषिरम्, तत्र-तत-मृदङ्ग पट हादिः, विततं अंचितरिभित नाटयविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइया देवा आरभडंनट्टविहिं उवदंसेंति' कितनेक देवों ने उस समय आरभट नामकी नाट्यविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइया देवा भसोलं नट्टविहिं उवदंसेंति' कितनेक देवोंने उस समय भसोल नामकी नाट्यविधिका उपदर्शन किया 'अप्पेगईया देवा आरभडभसोलनामदिव्वं-नट्टविहिं उवदंसेंति' कितनेक देवोंने उस समय आरभट भसोल नामकी दिव्य नाटयविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइया देवा उप्पाय निवाय पवुत्तं' कितनेक देवोंने उस समय उत्पात-उपर उछलने रूप और निपात अधः पतन होने रूप, संकुचित प्रसारित करने रूप, गमन आगमनरूप और भ्रान्तरूप सभ्रान्तरूप दिव्य नाट्यविधिको उपदर्शित किया 'अप्पेगइया देवा चउव्विहं वादियं वादेति' कितनेक देवोंने उस समय चार प्रकार के वाजों को बजाया वे चार प्रकार के बाजे इस प्रकार से हैं 'ततं विततं घणं झुसिरं' तत वितत घन और झुसिर इनमें मृदङ्ग और पटह आदि सिमित से नामनी नाटयविधि मतावी. 'अप्पेगइया देवा आरभडं नद्रविरहिं उवदंसेति' मा हेवास ते १मते मालट नभनी नाटयविधि मतापी अप्पेगइया देवा भसोलं नट्टविहिं उवदंसे ति' 21 हेवाये ये समये नसोय नामनी नाटयविधि तावी. 'अप्पेगइया देवा आरभडभसोल नाम दिव्वं नट्टवीहिं उपसे ति सा४ हेवाय ते मते मारमट मसेस नामनी नाटयविधि सतावी. 'अप्पेगइया देवा उप्पायनिवापयवुतं' ८सा हेवाय ते मते त्यात ઉપરઉછળવારૂપ અને નિપાત-નીચે પથારૂપ, સંકુચિત પ્રસારિત કરવારૂપ ગમન मागमन३५ तथा प्रान्त सममान्त३५ हिव्य नाटयविधि मतावी. 'अप्पेगइया देवा चउविहं वादियं वादेति' ८१४ हेवाये ये मते या२ प्रा२ना पान। गया. ते या२ ५४१२पायो २ प्रमाणे छ. 'ततं विततं घणंझुसिरं तत જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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