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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६६ विजयदेवाभिषेकवर्णनम् ३१७ मभिनय प्रकारमुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा-विलंबियं णट्टविहिं उवदंसेंति' अप्येकका देवाः विलम्वितं नाटयविधिमुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा- दुयविलंबियं नट्टविहिं उवदंसें ति'-अपि केचन देवा द्रुतविलम्वितं नाम नाटयविधि मुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा-अप्येकका देवाः-'अंचियं नट्टविहिं उवदंसेति'-अश्चित नामकं नाटयविधि दर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा रिभितं नट्टविहिं उवदंसेंति'-अपिकेचनैके देवा रिभितं नाम नाटयविधानं दर्शयन्ति । 'अप्पेगइया देवा अंचिय-रिभितं नट्टविहिं उवदंसेंति'- अप्येकका देवा अश्चितरिभितनामकं नाटयविधिमुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा'-अपिकेचन देवाः-'आरभडं णट्टविहिं उवदंसेंति'-आरभट नामकं नाटयविधिमुपदर्शयन्ति, 'अप्पेगइया देवा भसोलं नट्टविहिं उवदंसेंति'-अप्पे देवों ने इन ३२ प्रकार की नाटयविधियों में से कितनेक नाट्यविधियों का इस समय प्रदर्शन किया इस बात को सूत्रकार प्रकट कर रहे हैं। ____ 'अप्पेगइयादेवा दुयं णट्टविहिं उवदंसेंति' उसी प्रदर्शन में कितनेक देवोंने यह २२वीं द्रुत नाटयविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइया देवा विलंबियं नट्टविहिं उवदंसेंति' कितनेक देवों ने उस समय विलंबित नाट्यविधि का उपदर्शन किया। 'अप्पेगइया देवा दुय विलंबियं नविहिं उवदंसेंति' कितनेक देवोंने उस समय दूतविलंबित नाट्यविधिका प्रदर्शन किया 'अप्पेगइया देवा अंचियं नटविहिं उवदंसेंति' कितनेक देवोंने उस समय अंचित नाट्यविधिका प्रदान किया। 'अप्पेगइया देवारिभितं नहविहिं उवदंसेंति' कितनेक देवों ने उस समय रिभित नाटयविधिका उपदर्शन किया 'अप्पेगईया' देवा अंचियरिभियं नट्टविहिं उवदंसेंति' कितनेक देवोंने उस समय ચરમ કેવળજ્ઞાનની પ્રાપ્તિના અભિનય રૂપે તેઓના ચરમ તીર્થના પ્રવચનના અભિનયરૂપે અને છેલ્લા તેઓની નિર્વાણ પ્રાપ્તિના અભિનયરૂપે બતાવેલ હતી. દેવોએ આ બત્રીસ પ્રકારની નાટ્યવિધિમાંથી કેટલિક નાટ્યવિધિ આ समये भतार से पा सूत्र४२ प्रगट ४२ छ. 'अप्पेगइया देवा दुयं नटूटविहि डवदंसेति' से प्रशनमा ४ वो २२ यावीसभी द्रुत नामनी नाटयविधि मताची 'अप्पेगइया देवा विलंबियं नटविहिं उवद से ति' टा देवाय ते समय सिमित मध्यविधि हेमाडी 'अप्पेगइया यावलंबियं नट्टविहिं उवद से ति' ८४ हे ते मते द्रुतविलमित नाध्यविधि मतावी. 'अप्पेगइया देवा अंचियं नट्टविहिं उवदं से ति' मा हेवासे ते १मते मयत नामनी नाट्यविधि मतावी. 'अप्पे गइया देवा रिभितं नट्टविहिं उवद से तिस हेवाये से समये अमित नामनी नव्यविधि सतावी. 'अप्पे गइया देवा अंचियरिभियं नट्टविहिं उवदंसें ति' मा हेवाये थे मते मथित જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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