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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ६६ विजयदेवाभिषेकवर्णनम् ३११ 'अपेगइया देवा दुयनविधिं उवसेंति - अप्येकका देवा द्रुतनामक द्वाविंशति तमां नाटयविधि मुदर्शयन्ति, अत्र खल द्वत्रिंशत्प्रकारका नाटयविधयो भवन्ति ते च येन क्रमेण भगवतो वर्द्धमानस्वामिनः पुरतः सूर्यामदेवेनभाविता राजप्रश्नीयोपाने, ते - इहापि प्रदर्श्यन्ते, तत्र स्वस्तिक श्रीवत्सनन्दावर्त वर्द्धमानक भद्रासन कलश मत्स्य दर्पणाssख्याष्टमङ्गलाकाराऽभिनयात्मकः प्रथमो नाट्यविधिः - द्वितीयःआवर्त - प्रत्यावर्तश्रेणि प्रश्रेणीस्वस्तिकपुष्यमाणवक वर्द्धमानकमत्स्याण्डक मकराण्डकजारमारपुष्पावलि पत्र सागरतङ्ग वासन्तीलता पद्मला भक्तिचित्राभिनयात्मकः - २ तृतीयः - ईहामृग ऋषभतुरग नरमकर विहग व्याल किन्नररुरुरणों का दान दिया 'अप्पेगझ्या देवा' कितनेक देवोंने 'दुयं नहविधि उवदंसेति' द्रुतनामक रखी नाट्यविधिका प्रदर्शन किया, नाटयविधियां ३२ प्रकार की होती हैं ये जिस क्रम से भगवान् वर्द्धमानस्वामी के समक्ष सूर्याभदेव ने राजप्रश्नीय उपासकाङ्ग में प्रकट की हैं वे सब उसी तरह से यहां पर भी देवों ने की ऐसा यहां दिखाया जाता है । इनमें स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, बर्द्ध मानक, भद्रासन, कलश, मस्त्य, और दर्पण - नामके जो अष्टमंगल द्रव्य है इन आठ मंगल द्रव्यों के आकारका अभिनयरूप जो नाटयविधि हैं वह प्रथम नाटयविधि है १ आवर्त्त प्रत्यावर्त्त श्रेणी प्रश्रेणी स्वस्तिक पुष्पमाणवक, वर्द्धमानक मस्ल्याण्डक मकराण्डक जारमार पुष्पावलिपत्र पत्र सागरतरङ्ग, वासन्तीलता, पद्मलता, इन सब रचना करने रूप जो अभिनय है वह द्वितीय नाट्यविधि है२ ईहामृग, ऋषभ, तुरंग, नरमकर, विहग, व्याल, वत्थवीधिं आभरणवीधिं' यूर्णाना हान हीघा वस्त्रोना हान हीघा, सने मालूषोना हान हीधा. 'अप्पेगइया देवा' डेटला देवो. 'दुयं नट्टविधिं उवद सेंति' દ્રુતનામના નાટયવિધીનું પ્રદર્શન કર્યું. નાટયવિધિ ૩૨ બત્રીસ પ્રકારની હાય છે. એ નાવિધિ જે કમથી શ્રીભગવાન વમાન સ્વામીની સન્મુખ સૂર્યાંલદેવે રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગમાં પ્રગટ કરેલ છે. એ તમામ ક્રમ એજ રીતે અહીંયાં પણ દેવાએ ખતાન્યેા. એ પ્રમાણે અહીયાં બતાવવામાં આવે છે. તેમાં स्वस्ति४, श्रीवत्स नहावर्त, वर्षभान, मद्रासन, उत्सश, मत्स्य, भने हर्षा એ નામના જે આડ માંગલ દ્રવ્યે છે. એ મગલ દ્રવ્યના આકારની જે અભિ नय ३५ नाटयविधि छे. ते पडेची नाटयविधि छे. १, आवर्त, प्रत्यावर्त श्रेणी, પ્રશ્રેણી, સ્વસ્તિક, પુષ્પમાણુવક, વર્ધમાનક; મત્સ્યાંડક મકરાણ્ડક જારમાર પુષ્પાવલીપત્ર પત્ર, સાગરતરંગ, વાસંતીલતા, પદ્મલતા આ બધી રચના કરવા રૂપ જે અભિનય છે એ બીજી નાટવિવિધ છે. ર. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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