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________________ ३१० जीवाभिगमसूत्रे गया देवा हिरणवासं वासंति' अप्येकका देवा हिरण्यवर्ष वर्षन्ति, 'अप्पेगइया देवा सुवण्णवासं वासंति- अप्येकका देवाः सुवर्णवर्षा वर्षन्ति, सुवर्णवर्षा कुर्वन्ति इत्यर्थः 'अप्पेगा देवा एवं रयणवासं' - अप्येके देवा रत्नवर्ष वर्षन्ति, - ' वइरवास' वज्रवर्ष वर्षन्ति, 'पुष्पवासं' पुष्पवर्ष वर्षन्ति, 'मल्लवास' - माल्यवर्ष वर्षन्ति, 'गंधवासं ' गन्धानां वर्षा कुर्वन्ति, 'चुण्णवासं' - चूर्णानां वर्ष' वर्ष न्ति, 'वत्थवासं' आहरणवासं'वस्त्राभरणयोर्षर्ष वर्षन्तीति । 'अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाईति' - अप्येकका देवाः शेष देवेभ्यः हिरण्यविधिं भाजयन्ति विश्राणयन्ति ददन्तीतिभावः । एवं' सुवण्णविधिं भाजयन्ति ददतीत्यर्थः, 'रयणविधिं वइरविधि' - रत्नविधिं वज्रविधिं भाजयन्ति ददति, 'पुष्कविधि मलविधिं गंधविधिं पुष्पमाल्यगन्धानां विधिं भाजयन्ति, चूर्णविधिव, 'वत्थविधिं आभरणविधि' वस्त्राभरणानां विधिं भाजयन्ति । इति से इसे देखलेना चाहिये 'अप्पेगइया देवा सुवण्णवासं वासंति' कितनेक देवों ने उस समय सुवर्ण की बरषा की 'अप्पेगइया देवा एवं रयणावास' कितनेक देवोंने उस समय रत्नों की वरषा की, 'वरवास' वज्ररत्नों की वर्षा की 'पुप्फावासं' पुष्पों की वरषा की, 'मल्लवासं' मालाओं को वरषा की 'गंधवासं' गंध की वर्षा की 'चुण्णवासं' सुगंधित चूर्ण की वरषा की 'वत्थवासं' वेश-कीमती वस्त्रों की वरषा की 'आभरणवासं' आभरणों की वर्षा की 'अप्पेगइया देवा हिरण्णवीहिं भाइति' कितनेक देवोंने सुवर्णका दान दिया 'रयणवीधि' रत्नों का दान दिया 'वइरविधिं' वज्ररत्नों का दान दिया 'पुष्पविधि, मल्लविधि, गंधविधि' पुष्पों का दान दिया, मालाओंका दान दिया, सुगंधित द्रव्यों का दान दिया 'चुण्णविधि, वत्थविधि, आभरणविधि' चूर्णका दानदिया, वस्त्रों का दान दिया, और आभ - पहेला ५२वामां भावी गयेस छे. तेथी ते त्यांथी समल सेवी 'अप्पेगइया देवा सुवण्णवासं वासंति' डेटा देवोये ते वयते सोनानो परसाद वरसाव्या. 'अप्पेगइया देवा एवं रयणवासं' डेंटला हेवाथे से सभये रत्नोन परसाह १२साव्या. 'वइरवासं, १ रत्नोनो वरसाद परसाव्या. 'पुप्फावासं' पुष्योनो व२साढ वरसाव्या ‘मल्लवास' भाणामनो वरसाद परसाव्या. 'गंधवास' सुगंध द्रव्यनो वरसाह परसाव्या. 'चुण्णवासं' सुगंधित यूर्णुना परसाह वरसाव्या. 'वत्थवास' श्रीमती वस्त्रोनो परसाह वरसाव्या. 'आहरणवासं' आभूषणोनो वरसाह वरसाव्या. 'अप्पेगइया देवा हिरण्णवीहिं भाइंति' डेटा देवो सोनाना हान हीघा. 'रयणवीहिं' डेटला देवोये रत्नाना हान हीघा 'वईरवीहिं' डेटला हेवा व रत्नोना हान हीधा. 'पुप्फवीहिं, मल्लवीहिं, गंधवीहिं उटलाई देवाखे पुण्योना દાન દીધા માળાઓના દાન દીધા સુગ ંધિત દ્રવ્યેના દાન दीघा 'चुण्णवीहिं જીવાભિગમસૂત્ર w
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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