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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.६४ उपपातसभायाः वर्णनम् २५३ सुधर्मासभा तदेव निरवशेष यावद्गीमानस्यो विश्रामस्थानभूमिभाग उल्लोकस्थैवेति । 'तस्स बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स' तस्य खलु बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य, 'बहुमज्झ देसभाए' बहुमध्यदेशभागे, ‘एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पन्नत्ता' अत्र बहुमध्यदेशभागे एका बृहत रा मणिपीठिका विश्रुता सा खलु-'जोयणं आयामविक्खंभेणं' योजनमात्रमायामविस्ताराभ्याम् 'अद्धजोयणं बाहल्लेणं'अर्धयोजनं बाहल्येन-धनुःसहस्रमानं पृथुत्वेन 'सव्वमणिमया अच्छा०' सर्वभावेन मणिमयी-अच्छा श्लक्ष्णा-लण्हा धृष्टा मृष्टा नीरजस्का निर्मला निष्पङ्का निष्कण्टकच्छाया सप्रभा सोद्योता समरीचिक। प्रासादीया दर्शनीयाऽभिरूपा प्रतिरूपा इति 'तीसेणं मणि पेढिया उप्पि' तस्याः मणिपीठिकाया उपरि खलु 'एत्थ णं एगे महं सीहासणे पन्नते' अत्र मणिपीठिकोपरि-एकं महत्सिंहासनं वर्णन मणियों के स्पर्श तक कर लेना, जैसा कि पहिले यह किया जा चुका है। यही बात 'जहा सुधम्मा सभातं चेव निरवसेसं जाव गोमाणसीओ भूमिभागे उल्लोए तहेव' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है 'तस्स णं बहुसमरमज्जिस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगा महं मणिपेढिया पण्ण ता' उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के बीच में एक विशाल मणिपीठिका है 'जोयणं आयामविक्खं भेण अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमया अच्छा' यह मणिपीठिका लम्बाई चौडाई में एक योजन की है और मोटाई में आधे योजन की है । यह सर्वात्मना मणियों की बनी हुई है तथा अच्छा-आकाश और स्फटिकमणि के जैसी निर्मल है यहां इसके वर्णन में इलटणा, लोहा, धृष्टा, मृष्टा,' इत्यादि विशेषणों का भी कथन कर लेना चाहिये, और यह कथन प्रतिरूप विशेषण तक करना चाहिये 'तीसेणं मणिपेढियाए उचि इस मणिपीठिका के ऊपर 'एस्थ णं महं एगे सीहासणे पन्नते एक 'जहा सुहम्मा सभा तं चेव निरवसेसं जाव गोभाणसीओ भूमिभागे उल्लोए तहेवा २॥ सूत्र द्वारा प्रगट ४२८ छ. 'तस्स णं बहुसमरणिज्जस्स भूमिभागस्स बहमज्झ देसभाए एत्थणं एगा महं मणिपेढिया पण्णत्ता' से मसभा२मणीय भूमिमाना क्यम से विशाल मणिपा. छे. 'जोयणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोयणं बाहल्लेणं सव्व मणिमया अच्छा' 24 भाभी मामा से योजना છે. અને તેનો વિસ્તાર અર્ધા જનને છે. તે સિવ રીતે મણિયોથી બનેલ છે. તથા “જ” આકાશ અને સ્ફટિક મહિના જેવી તે નિર્મલ છે. અહિં તેના वर्णनमा 'लक्ष्णा, लण्हा, घृष्टा, मृष्टा' विगेरे विशेषणेनु ४थन ५७५ खे. 'तीसेणं मणिपेढियाए उप्पिं' से मणिपानी 6५२ 'एत्थ णं महं एगे જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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