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________________ म २५१ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू. ६४ उपपातसभायाः वर्णनम् गङ्गापुलिनवालुकावदालसम्, ओयवियक्षौमदुकूल प्रतिच्छादनम्, रक्तांशुकसंवृतम्, सुरम्यं प्रासादिकं-दर्शनीयमभिरूपं प्रतिरूपम् । तस्याः खलु-'उववायसभाए गं उप्पि' उपपातसभाया उपरि, 'अट्ठमंगलगा' अष्टावष्टौ मङ्गलकानि स्वस्तिक-श्रीवत्स-प्रभृतीनि, 'झया' ध्वजाः कृष्णनीलादिकाः 'छत्ताइछत्ता जाव उत्तिमागरा' छत्रातिच्छत्राणि-उत्तमप्रकाराणि षोडशविधैः रत्नवैडूर्यादिभिरुपशोभितानि । 'तीसे गं उववायसभाए' तस्याः खलूपपातसभायाः 'उत्तरपुरथिमेणं' ऐशान्याम्, 'एत्थणं एगे मह हरए पन्नते' अत्र खलूपपात. सभाया उत्तरपूर्वदिग्भागे-एको महान् हृदः प्रज्ञप्तः ॥ ‘से गं हरए' स खलु हृदः 'अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं' अर्धत्रयोदश-सार्धद्वादश योजनान्यायामेन, 'छक्कोसाई जोयणाई बिक्खंभेण' षटू क्रोशानि योजनानि विष्कम्भेण-क्रोशाधिकानि षड् योजनानि विस्तारवृत्त्या इत्यर्थः 'दसजोयणाई उव्वेहेणं' दशयोजनान्युशरीर प्रमाण तकिये से युक्त है 'इत्यादि रूप से जैसे सुधर्मासभा. स्थित देवशयनीय देवशय्याका वर्णन किया गया है वैसा ही वर्णन यहां पर भी इसका करलेना चाहिये 'तस्सा उववायसभाएणं उम्पि' उस उपपात सभा के उपर 'अट्टमंगलगा' आठ आठ मंगलद्रव्य है एवं कृष्ण नील आदि वर्णवाली अनेक ध्वजाएं हैं तथा छत्रातिछत्र है। ये छत्राति छत्र सोलह प्रकार के वैडूर्य आदिरत्नों से सुशोभित है। 'तीसेणं उववायसभाए' उस उपपात सभा की 'उत्तरपुरस्थिमेणं' इशान दिशा में 'एत्थणं एगे महं हरए पन्नत्ते' एक विशाल हृद हैं 'सेणं हरए' यह हृद् 'अद्धतेरसजोयणाई आयामेणं छकोसाइं जोयणाई विक्खंभेणं' लम्बाई में १२॥ योजन का है और चौडाइ में ६। योजन का है । 'दस जोयणाई उत्वेहेणं' तथा इसका उद्वेध १० योजन का है, યુક્ત છે. વિગેરે પ્રકારથી સુધર્માસભાના દેવશયનીયનું જે રીતે વર્ણન કરેલ छे, मेरी प्रमाणेनु वर्णन मिडीया ५ ४२री से 'तस्सा उववायसभाए णं उप्पि' यो ५५त समानी ५२ 'अट्ठमंगलगा' स्वस्ति विगेरे २03 28 મંગલ દ્રવ્યો છે. અને કૃષ્ણનીલ વિગેરે રંગની ધજાઓ છે. તથા છત્રાતિછત્ર छ. २॥ छातिछत्री सो प्र४२॥ वैडूय विगेरे रत्नाथी सुशामित छ. 'तीसेणं उववायसभाए' से यात समानी 'उत्तरपुरथिमेणं' शान दिशामा 'एत्थ णं एगे महं हरए पन्नत्ते' से विश ४ छे. 'से णं हरए' से ६४ 'अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं छक्कोसाइं जोयणाइ विक्खंभेणं' मा १२॥ सा। मा२ यान छे. मने पडामा ११ सपा ७ थान छ. 'दस जोयणाई उव्वेहेणं' तथा तेन। उद्वेष १० इस योजना छ. 'अच्छे सण्हे' मा ४२७. જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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