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________________ १५६४ जीवाभिगमसूत्रे गुणा' अप्रथम समय तिर्यग्योनिक जीव अनन्तगुणें अधिक हैं । 'सेत्तं दसविहा सव्व जीवा पण्णत्ता' इस प्रकार से यह विवेचन दस प्रकार के सर्व जीवों के सम्बन्ध में किया गया है इस विवेचन के समाप्त होने पर 'से तं सव्व जीवाभिगमे' सर्व जीवाभिगम प्रतिपादित हो जाता है । जीवाभिगम सूत्र समाप्त हुआ और उसकी यह टीका भी समाप्त हुई ॥सू० १५५॥ श्री जैनचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलाल व्रतिविरचित जीवाभिगम सूत्र की प्रमेयद्योतिनि व्याख्या में ॥दसवीं प्रतिपति समाप्त ॥१०॥ छ तेसो भनतम पधारे छ. तेन ४२di 'अपढमसमय तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा' मप्रथमसमयमा पत मान तिय-योनि । मनतम पधारे छ. 'से तं दसविहा सव्वजीवा पण्णत्ता' २॥ प्रमाणे 20 विवेयन स प्रा२न। सब वान समयमा ४२पामा मावेस छे. २मा विवेयन समास थdi 'सेत्तं सव्व जीवाभिगमे' सब नियमनु प्रतिपादन पूर्ण गये छे. ॥सू. १५५॥ શ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્ય શ્રી ઘાસીલાલ વ્રતિવિરચિત જીવભિગમ સૂત્રની પ્રમેયોતિની ટીકાની દસમી પ્રતિપત્તિ સમાપ્ત ૧૦ જીવભિગમ સૂત્ર સમાપ્ત જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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