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________________ १५३४ जीवाभिगमसूत्रे समयदेवा असं खेज्जगुणा पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा' गौतम ! सर्वस्तोकाः प्रथमसमयमनुष्याः अप्रथमसमयमनुष्या असंख्येयगुणाः एभ्यः प्रथमसमय देवाः एभ्यः प्रथमसमयतिर्यग्योनिकाः क्रमशोऽसंख्येयगुणाः 'अपदमसमय णेरइया असंखेज्जगुणा अपढमसमयदेवा असंखेज्जगुणा सिद्धा अनंतगुणा' एभ्योऽप्रथमनैरयिका एभ्योऽप्रथमदेवा असंख्येयगुणाः सिद्धा अनन्तगुणाः सिद्धानामनन्तत्वात् । 'अपढमसमयतिरिक्खजोणिया अनंतगुणा' सिद्धाऽपेक्षयाऽप्रथम समय तिर्यग्योनिका अनन्तगुणाः, तिर्यग्योनिकेषु वनस्पतीनामपि समावेशात् - तेषां चाऽनन्ताऽनन्तत्वात् इति अल्पबहुत्वम् । उपसंहरन्नाह - 'से तं नवविहा सव्वजीवा' त एते नवविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः || सू० १५३ ॥ अप्रथम समयवर्ती मनुष्य असंख्यातगुणें अधिक हैं । इनकी अपेक्षा 'पढमसमय नेरइया असंखेज्जगुणा' प्रथम समयवता नैरयिक असंख्यातगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'पढमसमय देवा असंखेज्जगुणा' प्रथम समयवर्ती देव असंख्यातगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'पदम समय तिरिक्खजोणि० असं०' प्रथम समयवर्ती तिर्यग्योनिक जीव असंख्यातगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'अपढम नेर० असंखे०' अप्रथम समवर्ती नैरयिक असंख्यातगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'अपढमसम० देवा असंखे० ' अप्रथम समयवर्ती देव असंख्यात गुणें अधिक हैं। इनकी अपेक्षा 'सिद्धा अनं० सिद्ध अनन्तगुणें अधिक हैं इनकी अपेक्षा 'अपढम समय तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा' अप्रथम समयवर्ती तिर्यग्योनिक जीव अनन्तगुणें अधिक हैं। 'सेत्तं नवविहा सजीवा' इस प्रकार से ये नौ प्रकार के सर्वजीव कहे गये है ॥ १५३ ॥ " અસંખ્યાતગણા वधारे छे. तेना उरतां 'पढमसमयनेरइया असंखेज्जगुणा' प्रथम सभयवती नैरयि। असभ्याता वधारे छे. तेना उरतां 'पढमसमय देवा असंखेजगुणा' प्रथम सभयवती देवा असभ्याता वधारे छे. तेना रतां 'पढमसमयतिरिक्खजोणिया असंखेज्जगुणा' प्रथम सभयवर्ती तिर्यग्योनिः भव अस ंख्यातगणा वधारे छे तेना ४२त 'अपढम समयनेरइया असंखेज्जगुणा' म प्रथम सभयवती नैरयि। असभ्याता वधारे छे. तेना १२ता 'अपम समय देवा असंखेज्जगुणा' अप्रथम सभयवर्ती देवो असभ्याता वधारे छे तेना ४२तां 'सिद्धा अनंतगुणा' सिद्धो अनंतगा छे तेनाश्ता 'अपढम समय तिरिक्खजोणिया अणतगुणा' प्रथम सभयवर्ती तिर्यग्योनि वो अनंतशय पधारे छे. 'से त्तं नवविहा सव्वजीवा' याप्रमाणे नव प्रारना सर्व व કહેવામાં આવેલ છે. ા સૂ. ૧૫૩ ૫ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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