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________________ १५०४ जीवाभिगमसूत्रे तिर्यग्योनिकत्वेन भदन्त ! तिर्यग्योनिकः खलु कियच्चिरं भवति ? भगवानाह - गौतम ! जघन्ये नान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण वनस्पतिकालः । 'तिरिक्ख जोणिणीणं भंते !० जहन्नेगं अंतोमुहतं -उकोसेणं तिनि पलिओ माई पुव्वकोडी पुहुत्तमम्भहिया ' तिर्यग्योनिकी खलु भदन्त ! तिर्यग्योनित्वरूपेण कालतः कियच्चिरं स्थितिमतोः ? भगवानाह - गौतम ! जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि पूर्वकोटि पृथक्त्वाऽभ्यधिकानि । ' एवं मणूसे - मणूसी' एवं मनुष्याः- मानुष्योऽपि तिर्यतिर्यग्योनिक पुल्लिङ्ग रूप से कितने काल तक रहता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'जहनेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' हे गौतम तिर्यग्योनिक पुल्लिङ्ग जीव तिर्यग्योनिक पुल्लिङ्ग रूप से कम से कम एक अन्तर्मुहूर्त तक और अधिक से अधिक वनस्पतिकाल प्रमाण अनन्त काल तक रहता है 'तिरिक्खजोणिणी णं भंते ! जहन्नेणं अंतोमुत्तं उकोसेणं तिन्नि पलिओ माई पुम्बकोडी पुहुत्तमम्भहियाई' हे भदन्त ! तिर्यग्योनिक स्त्रीलिङ्ग जीव तिर्यग्योनिक स्त्रीलिङ्ग रूप से कितने काल तक रहती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम ! तिर्यग्योनिक स्त्रीलिङ्ग जीव तिर्यग्योनिक स्त्रीलिङ्ग रूप से कम से कम एक अन्तर्मुहूर्त तक रहता है और अधिक से अधिक पूर्वकोटि पृथक्व अधिक तीन पल्योपम काल तक रहता है 'एवं मणूसे मणूसी' इसी तरह से मनुष्य पुलिङ्ग और मनुष्य स्त्रीलिङ्ग जीव भी मनुष्य पुल्लिङ्ग रूप से और मनुष्यस्त्रीलिङ्ग रूप से जैसा कि संसार समापन्नक सप्त विध प्रतिपत्ति में कहा गया है वैसा ही वह सब कथन यहां पर भी पर्यन्त रहे छे. आ प्रश्नमा उत्तरमां प्रभुश्री गौतमस्वामीने हे छे - 'जहणेणं अंतोमुद्दत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' हे गौतम! पु३ष लतना तिर्यग्योनि જીવ તિગ્યેાનિક પુરૂષ પણાથી એછામાં ઓછા એક અંતર્મુહૂત પર્યંન્ત मने वधारेमा वधारे वनस्पतिक्षण प्रभाणु अनंतआज पर्यन्त रहे छे. 'तिरि क्खजोणीणं भंते ! जहणणेणं अतोमुहुत्त उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडी पुहुत्तमव्भहियाई' हे भगवन् ! तिर्यग्योनि सीलिंग व तिर्यग्योनि स्त्री પણાથી કેટલા કાળ પર્યંત રહે છે, આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે હે ગૌતમ ! તિગ્યેાનિક સ્રિલિંગ જીવ તિર્યંચૈાનિક સ્ત્રીલિંગપણાથી ઓછામાં ઓછા એક અંતર્મુહૂત પર્યંન્ત રહે છે. અને વધારેમાં વધારે પૂર્વअटि पृथक्त्व वधारे त्रषु पयोभान पर्यन्त रहे छे. 'एवं मणूसे मणूसी' એજ પ્રમાણે મનુષ્ય પુરૂષ જાત અને મનુષ્યસ્ત્રી જાતના જીવા પણ મનુષ્ય પુરૂષ પણાથી અને મનુષ્ય સ્ત્રી પણાથી જે પ્રમાણે સંસાર સમાપન્નક સાત જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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