________________
१४६८
जीवाभिगमसूत्रे हिया' एभ्यश्चतुरिन्द्रिया विशेषाधिकाः 'तेइंदिया विसेसाहिया' एभ्यः त्रीन्द्रियाः विशेषाधिकाः 'एगिदिया अणंतगुणा' तत एकेन्द्रिया अनन्तगुणाः 'अणिदिया अणंतगुणा' ततोऽनिन्द्रिया अनन्तगुणाः। 'अहवा छव्विहा सव्वजीवा पनत्ता तं जहा-ओरालियसरीरी-वेउव्वियसरीरी-आहारगसरीरीतेयगसरीरी-कम्मगसरीरी-असरीरी' अथवा प्रकान्तरेण सर्वजीवाः षड्विधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-औदारिकः वैक्रिय० आहारक० तैजस० कार्मण. अशरीरिणश्च एष्वेव सर्वेषामन्तर्भावः । 'ओरालियसरीरी णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होई' ? 'चउरिंदिया विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा चौइरिन्द्रय जीव विशेषाधिक है 'तेइंदिया विसे० बेइंदिया विसेसा०' तेइन्द्रिय जीव इनकी अपेक्षा भी विशेषाधिक हैं इनकी अपेक्षा दोइन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। 'एगिदिया अणंतगुणा' इनकी अपेक्षा जो एकेन्द्रिय जीव हैं वे अनन्तगुणें अधिक हैं और इनकी भी अपेक्षा 'अणिदिया अणंतगुणा' जो अनिन्द्रिय जीव हैं वे अनन्तगुणे अधिक हैं । 'अहवाछविहा सव्व जीवा पन्नत्ता' अथवा-इस रीति के अनुसार भी समस्त जीव ६ प्रकार के कहे गये हैं 'तं जहा' जैसे-'औरालियसरीरी वेउवियसरीरी, आहारगसरीरी, तेयगसरीरी, कम्मगसरीरी, असरीरी'
औदारिक शरीरी, वैक्रियशरीरी, आहारक शरीरी, तैजसशरीरी, कार्मणशरीरी और अशरीरी। ___ अब गौतम ! इनकी कायस्थिति के सम्बन्ध में प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ओरालिय सरीरीणं भंते! कालओ केवच्चिरं होई' हे भदन्त !
'अप्पाबहुयं तमन २५६५महुवन विया२ मा प्रमाणे छ. 'सव्वत्थोवा पंचिंदिया' पयन्द्रिय पाने व छ. ते सौथी ६५ छ. 'चउरिदिया विसेसाहिया' तन। ४२di यान्द्रिय वाणा व विशेषाधि छ. 'तेइंदिया विसेसाहिया बेइंदिया विसेसाहिया' तेना ४२di Y दिया । विशेपाधि छ. मन तेन। ४२di मेद्रियवा । विशेषाधि छ. 'एगि दिया अणंतगुणा' तेना ४२ता २ मेन्द्रिय ७१ छे ते मनतम पधारे छ. अने तन। ४२तां ५५ 'अणिदिया अणंतगुणा' २ सनीन्द्रिय ७१ छे तेया मनातn qधारे 'अहवा छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता' 4241 मारीते ५७ सपा
। ७ प्र४२न। वामां मावेश छे. 'तं जहा' म है-'ओरालियसरीरी वेउ व्वियसरीरी, आहारगसरीरी, तेयगसरीरी, कम्मगसरीरी असरीरी' मौहार शरीरी, વૈકિયશરીરી, આહારક શરીરી, તેજસશરીરી, કામણશરીરી અને અશરીરી,
હવે ગૌતમસ્વામી તેઓની કાયસ્થિતિના સંબંધમાં પ્રભુશ્રીને એવું પૂછે
જીવાભિગમસૂત્ર