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__ जीवाभिगमसूत्रे स्यान्तरम् । थावरस्स अंतरं दो सागरोवमसहस्साइं साइरेगाई, णो तस 'थावरस्स णत्थि अंतरं' स्थावरस्यान्तरं द्वे सागरोपमसहस्र सातिरेके, नो त्रस स्थावरस्यान्तरं नास्ति, 'अप्पा बहु०' अल्पबहुत्वम्-भदन्त ! सानां-स्थावराणां-नो त्रसस्थावराणां च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका तुल्याविशेषाधिकावेति प्रश्ने भगवानाह-हे गौतम ! 'सव्वत्थोवा तसा' सर्वस्तोकास्त्रसाः शेषजीवाऽपेक्षया, 'नो तसा नो थावरा अनंतगुणा' नो तसा नो स्थावराचाऽनन्तगुणाः 'स्थावरा अणंतगुणा' एभ्यः स्थावराः अनन्तगुणाः सिद्धेभ्योऽपि स्थावरा अनन्तगुणाः। 'सेत्तं तिविहा सव्वजीवा पन्नत्ता' स एते त्रिविधाः सर्वजीवाः, इति ॥सू० १४५॥ ___ सम्प्रति चतुर्विधजीवप्रतिपत्तिमाह
मूलम् तत्थ जे ते एवमासु चउव्विहा सव्वजीवा पन्नत्ता ते एवमाहंसु-तं जहा मणजोगी वइजोगो कायजोगी अजोगी। मणजोगीण भंते ! जहन्नेणं एक्कं समय उक्को. अन्तर वनस्पतिकाल प्रमाण हैं 'थावरस्स अंतरं दो सागरोवमसहस्साई साइरेगाई' स्थावर जीव का अन्तर कुछ अधिक दो हजार सागरोपम का है । 'णो तस थावरस्स णस्थि अंतरं' जो जीव नो बस नो स्थावर हैं-सिद्ध हैं-उनका अन्तर नही होता है।
इनके अल्पबहुत्व का विचार-'सव्वत्थोवा तसा, नो तसा नो थावरा अणंतगुणा, थावरा अणंतगुणा' सब से कम त्रस जीव है इनकी अपेक्षा नो त्रस नो स्थावर जीव अनन्तगुणे अधिक हैं । इनकी भी अपेक्षा स्थावर अनन्तगुणे अधिक हैं। ‘से तं तिविहा सच्च जीवा पन्नत्ता' इस प्रकार से समस्त जीव तीन प्रकार के कहे गये हैं ॥१४५॥
એમના અંતર દ્વારનું કથન 'तसस्स अंतरं वणस्सइकालो' सय वोनु मत२ वनस्पति ४ प्रभानु छ. 'थावरस्स अंतरं दो सागरोवमसहस्साइं साइरेगाई' स्था१२
नु मत२ ४४ धारे मे डन्त२ सायमनु छ. 'णो तसथावररस णत्थि अंतरं' २ प न स भने । स्था१२-सिद्ध छ तेसोनु मत२ लातु नथी. तभना २५८५ महुपयनु ४थन-'सव्वत्थोवा तसा, नो तसा नो थावरा अणंत गुणा' सौथी माछ। स ७ छ. तेन। ४२di न स नो स्था१२ ७१ मत पधारे छे. 'सेत्तं तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता' २ रीत सघा જીવે ત્રણ પ્રકારના કહેવામાં આવેલા છે. સૂ. ૧૪૫ છે
જીવાભિગમસૂત્ર