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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.१० सू.१४३ प्रकारान्तरेण वैविध्यम् १३६५ तं जहा छ उमस्थ अणाहारए य केवलि अणाहारए य' अनाहारकः खलु भदन्त ! कियच्चिरं कालतः ? गौतम ! अनाहारको द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-छदमस्थानाहारकश्च केवल्यनाहारकश्च । 'छउमस्थ अणाहारएणं भंते ! जाव केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एक समयं-उकोसेणं दो समया' छदमस्थानाहारकः खलु कालतो भदन्त ! कियच्चिरं भवति ? गौतम ! जघन्येनैक समयम्-उत्कर्षण द्वौ समयौ जघन्याधिकाराद् द्वि सामयिकी विग्रहगतिमपेक्ष्यैतत् । 'केवलि अणाहारए दुविहे पन्नत्ते-तं जहा-सिद्धकेवलि अणाहारए य भवत्थ केवलि अणाहाजीव अनाहारक रूप से कितने काल तक रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा' जैसे 'छउमस्थ अणाहारए य केवलि अणाहारए य' एक छद्मस्थ अनाहारक और दूसरे केवल्यानाहारक इनमें हे भदन्त ! जो छद्मस्थानाहारक जीव हैं वह छद्मस्था नाहारक रूप से कितने काल तक रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा !' हे गौतम ! छद्मस्थानाहारक कम से कम एकसमय तक और उत्कृष्ट से दो समय तक छद्मस्थानाहारकपना से रहता है। दो समय तक छद्मस्थानाहारक रूप से रहने का जो समय कहा गया है वह दो समय वाली विग्रहगति की अपेक्षा से कहा गया है क्योंकि जीव इन समयों में अनाहारक रहता है । 'केवलि अणाहारए दुविहे पण्णत्ते' केवली अनाहारक दो प्रकार के कहे गये है जैसे एक सिद्धकेवलि-अनाहारक और दूसरे भवस्थ केवलि अनाहारक णं भंते केवच्चिरं लगवन् मनाहा२४ ७१ मना.२४ पाथी ८४ ५-त २९ छ ? २ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छे छे 3-'गोयमा ! अणाहारए दुविहे पण्णत्ते' ॐ गौतम ! मना।२४ मे. ५४१२॥ ४वामा मासा छे. 'त जहा' म 'छउमत्थअणाहारए य केवलि अणाहारए य' से छ५२५ मनाहा२४ અને બીજા કેવલી અનાહારક તેમાં જે છઘસ્થ અનાહારક જીવ છે તે છત્રસ્થ અનાહારક પણાથી કેટલા કાળ પર્યન્ત રહે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી छ -'गोयमा ! ' हे गौतम ! ७५२५ मनाडा२४ छ। मा माछा मे સમય પર્યન્ત અને ઉત્કૃષ્ટથી બે સમય પર્યન્ત છવસ્થ અનાહારક પણાથી રહે છે. બે સમય સુધી છદ્મસ્થ અનાહારક પણાથી રહેવાનો જે સમય કહેવામાં આવેલ છે. તે બે સમયવાળી વિગ્રહ ગતિની અપેક્ષાથી કહેવામાં सास छ. भ3-७१ ॥ सभयोमा मनाडा२४ २९ छ. 'केवलि अणाहारए दुविहे पण्णत्ते सेक्सी अनाडा२४ मे २॥ ४ामा मायेदा छ. २ જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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