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________________ १२९२ जीवाभिगमसूत्रे नेरइयस्स जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तमभहियाइ 'उक्कोसेणं वणस्सइकालो' प्रथमसमयनैरयिकस्य दशवर्षसहस्राण्यन्तर्मुहूर्ताभ्यधिकानि जघन्येनाऽन्तरम् नरकान्निःमृत्य पुनर्नरकागमने वनस्पतिकाल उत्कर्षेणेति नरकादुद्वयं पारंपर्येण वनस्पतिषु गत्वाऽनन्तमपि कालमवस्थानात् । 'अपढमसमयनेरइयस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' अप्रथमसमयनैरयिकस्य जघन्येनाऽन्तर्मुहूर्तम् समयाऽधिकान्तर्मुहूर्तम् तच-नरकादुद्वर्त्यतिर्यग्गर्भ वा मनुष्यगर्भे वाऽन्तर्मुहूर्तं स्थित्वा भूयो नरकेपुत्पद्यमानस्य ज्ञातव्यम् (समयाधिकता च-प्रथमकितना है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम ! प्रथम समयवर्ती नैरयिक का अन्तर 'जहन्नेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्त मन्भहियाई' जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त अधिक दश हजार वर्ष का है और 'उक्कोसेणं वणस्सइकालो' उत्कृष्ट अन्तर वनस्पतिकाल प्रमाण है इसका तात्पर्य ऐसा है कि दश हजार वर्ष की स्थिति वाला कोई नारक जीव नरक से निकल कर अन्यत्र गति में एक अन्तर्मुहूर्त रहने के बाद पुनः नैरयिकों में उत्पन्न हो जाता है उसकी अपेक्षा यह जघन्य अन्तर कहा गया है तथा उत्कृष्ट अन्तर नरक से निकल कर परम्परा रूप से वनस्पतियों में अनन्तकाल तक जन्म लेने वाले नारक की अपेक्षा से है 'अपढम समय नेरइयस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' अप्रथम समयवर्ती नैरयिक काअन्तर काल की अपेक्षा जघन्य से एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्त का है ऐसा यह अन्तर नरक से निकल कर तिर्यग्गति की स्त्री या मनुष्यगति की स्त्री के गर्भ में एक अन्तर्मुहूर्त तक रह करके बाद में वहां से मरण कर पुनः नरकछ. 3-3 गौतम ! प्रथम समययती नै२यितुं मत२ 'जहण्णेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहत्तमब्भहियाई'धन्यथी से मत डूत मधि सहा वर्षन छ. मने, 'उक्कोसेणं वणस्सइ कालो' उत्कृष्ट मत२ वनस्पति प्रभानु छ. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-દસ હજાર વર્ષ ની સ્થિતિવાળે કઈ નારક જીવ નરકમાંથી નીકળીને બીજી ગતિમાં એક અંતર્મુહૂર્ત રહ્યા પછી ફરીથી નૈરયિક પણાથી ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. તે અપેક્ષાએ આ જઘન્ય અંતર કહેવામાં આવેલ છે. તથા ઉત્કૃષ્ટ અંતર નરકમાંથી નીકળીને પરંપરા રૂપે વનસ્પતિમાં અનંત કાળ સુધી જન્મ લેવાવાળા નારકની અપેક્ષાથી છે. 'अपढमसमयनेरइयरस जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' मप्रथम સમયવતી નૈરયિકનું અંતર કાળની અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક સમય અધિક અંતર્મુહૂર્તનું છે. આ પ્રમાણેનું આ અંતર નરકમાંથી નીકળીને તિર્ય; જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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