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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.५ सू.१३५ सामान्यतो निगोदस्वरूपनिरूपणम् १२५९ खेज्जा नो अणंता' गौतम ! नो संख्येया अगुलाऽसंख्येयभागावगाहनवतां तेषां सर्वलोकाऽऽपन्नत्वात्-अतोऽसंख्येयाः असंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाणत्वात, अनन्ता अपि नो अनन्ततया केवलवेदसाऽनुपलम्भात् इति । 'एवं पज्जत्तगा वि' एवमेव पर्याप्त निगोदा अपि नो सख्याताः नो अनन्ताः किन्त्वसंख्याताः ज्ञेयाः। 'एवं अपज्जत्तगा वि' एवम्-अपर्याप्तनिगोदा अपि असंख्याता एव । 'सुहुम निभोयाणं भंते ! दव्वट्ठयाए कि सखेज्जा असंखेज्जा अर्णता ? गोयमा ! नो संखेज्जा असंखेज्जा नो अणंता' सूक्ष्मनिगोदाः खलु भदन्त ! द्रव्यार्थतया कि संख्याताः असंख्याताः अनन्ताः वेति प्रश्नः भगवानाह-गौतम ? नो संख्येयाः शरीरापेक्षयाऽङ्गुलासंख्येयभागावगाहनानां सकललोकापन्नत्वात् किन्तु असंख्याताः असंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाणात्-अनन्ता अपि नो भवन्ति केवलवेदसाऽनुपलम्भात् । ‘एवं पज्जत्तगावि' एवमेतद्युक्तोक्त्याऽसंख्याता एव, पर्याप्तसूक्ष्मनिगोदा द्रव्यार्थतया ज्ञेयाः । 'एवं अपज्जत्तगा वि एवम् अपर्याप्तका अपि सूक्ष्म'गोयमा ! नो संखेज्जा असखेज्जा नो अणंता' हे गौतम ! निगोद न संख्यात हैं और न अनन्त हैं किन्तु असंख्यात हैं। 'एवं पज्ज. त्तगा वि अपज्जत्तगा वि' इसी प्रकार से पर्याप्त निगोद भी न संख्यात है न अनन्त हैं किन्तु असंख्यात हैं । 'एवं अपज्जत्तगा वि' इसी प्रकार अपर्याप्तक निगोद भी असंख्यात ही हैं अनन्त आदि नहीं हैं। 'सुहुमणिओयजीवा णं भंते ! वट्टयाए किं संखेज्जा असंखेजा अणंता' हे भदन्त ! सूक्ष्म निगोद जीव क्या द्रव्य दृष्टि से संख्यात हैं ? या असंख्यात हैं ? या अनन्त हैं ? इसके उत्तर में प्रभ कहते हैं-'गोयमा ! णो संखेजा, असंखेज्जा, णो अणंता' हे गौतम ! सूक्ष्म निगोद जीवन संख्यात हैं न अनन्त है किन्तु असंख्यात हैं। 'एवं पज्जत्तगा वि अपज्जत्तगा वि' इसी प्रकार से सूक्ष्म निगोद असंखेज्जा नो अणंता' गौतम ! निगाह सध्यात नथी. मन मानत पण नथी. ५२ मिस ज्यात छ. 'एवं पज्जत्तगावि अपज्जत्तगा वि' से प्रभारी पर्यात निगोड ५९ सध्यात नथी. मनात ५५ नथी. ५२'तुमसभ्यात छे. 'एवं अपज्जत्तगा वि' से प्रमाण अपर्याप्त निगाह ५ मसभ्यात छे. मनात सभ्यात नथी. 'सुहुमणिआयजीवाणं भंते ! दव्वट्ठयाए कि संखेज्जा असंखेज्जा અiા' હે ભગવન સૂક્ષ્મ નિગદ છે દ્રવ્ય દષ્ટિથી શું સંખ્યાત છે ? અથવા અસંખ્યાત છે? કે અનંત છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा ! णो संखेज्जा, असंखेज्जा, णो अणंता है गौतम ! सूक्ष्म निगाह । संज्यात नथी. ते मनंत ५ नथी तु मसभ्यात छ. 'एवं જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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