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________________ १२४२ जीवाभिगमसूत्रे कायिकाः असंख्येयगुणाः 'मुहुमतेउकाइया असंखेज्जगुणा' ततः सूक्ष्मतेजस्कायिका असंख्येयगुणाः 'मुहुमपुढवी० विसेसाहिया' ततः सूक्ष्मपृथिवीकायिका विशेषाधिकाः 'मुहुम आउ० वाउ०' ततः सूक्ष्माऽप्कायिकाः ततः सूक्ष्मवायुकायिका विशेषाधिकाः। 'मुहुम निओया असंखेज्जगुणा' ततः सूक्ष्म निगोदा असंख्येयगुणाः । 'बायरवणस्सइकाइया अणंतगुणा' ततो बादरवनस्पतिकायिका अनन्तगुणा अधिकाः 'बायरा विसेसाहिया' ततः सामान्यतो बादरा विशेषाधिका 'मुहमवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा' ततः सूक्ष्मवनस्पतिकाया असंख्यातगुणाः 'मुहुमा विसेसाहिया' ततः सामान्यतः सूक्ष्मा विशेषायिक असंख्यातगुणे अधिक हैं और इनकी अपेक्षा बादर वायुकायिक असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'सुहुम तेउकाइया असंखेज्जगुणा' बादर बायुकायिकों की अपेक्षा सूक्ष्म तेजस्कायिक असंख्यातगुणें अधिक हैं 'सुहुम पुढवी. विसेसाहिया' इनकी अपेक्षा सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव विशेषाधिक हैं। 'सुहुम आउ वाउ' इनकी अपेक्षा सूक्ष्म अप्कायिक जीव विशेषाधिक हैं। इनकी अपेक्षा सूक्ष्म वायुकायिक जीव विशेषाधिक है 'सुहुम णिओया असंखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा सूक्ष्म निगोद असंख्यातगुणें अधिक हैं । 'बायर वणस्सइकाइया अणंत. गुणा' सूक्ष्म निगोदों की अपेक्षा बादर वनस्पतिकायिक जीव अनन्त गुणे अधिक हैं 'बायरा विसेसाहिया' बादर वनस्पतिकायिकों की अपेक्षा सामान्य बादर जीव विशेषाधिक है 'सुहुमा वणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा' सामान्य बादर जीवों की अपेक्षा सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव असंख्यातगुणे अधिक हैं । 'सुहुमा विसेसाहिया' सूक्ष्म છે. તેના કરતાં બાદર અષ્કાયિક અસંખ્યાતગણી વધારે છે. અને તેના કરતાં माह२ वायुय मसभ्याता धारे छे, 'सुहूम तेउकाइया असंखेज्जगुणा' બાદર વાયુકાયિકાના કરતાં સૂક્ષમ તેજસ્કાયિક અસંખ્યાતગણા વધારે છે. 'सुहुम पुढवीकाइया विसेसाहिया' तेन ४२ता सूक्ष्म वीयि४ ०१ विशे. धि छ. 'सुहम आउ वाउ' तेना ४२ता सूक्ष्म २५ यि ७१ विशेषाधि छे. भने तना ४२ता सूक्ष्म वायु४ायि४१ विशेषाधि छ. 'सुहमणिओया असंखेज्ज गुणा' तन। ४२त सूक्ष्मानगो मसभ्यात पधारे छे. 'बायर वणस्सइ काइया अणतगुणा' सूक्ष्म निगोहाना ४२di २ वनस्पतिय ७१ मनत ॥ वधारे छे. 'बायरा विसेसाहिया' मा६२ वनस्पतियाना ४२तां सामान्य मा२०१ विशेषाधि४ छ. 'सुहुम वणरस इकाइया असंखेज्जगुणा' सामान्य मा६२ वाना ४२ता सूक्ष्म वनस्पति यि ७१ मध्यातमा थारे छे. 'सुहुमा જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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