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________________ १२४० जीवाभिगमसूत्र इति । 'बायरा अपज्जत्तगा-विसेसाहिया' बादरवनस्पति अपर्याप्तकेभ्योऽपर्याप्त बादरा विशेषाधिकाः । 'बायरा पज्जत्ता विसेसाहिया' तेभ्यः पर्याप्त बादराविशेषाधिकाः। इति बादराश्रिताल्पबहुत्वम् । संप्रति सूक्ष्मबादराऽल्पबहुत्वम् –'एएसि णं भंते ! सुहुमाणं-मुहुमपुढवीकाइयाणं जाव सुहमनिगोयाणं' सामान्यतः सूक्ष्माणां सूक्ष्मप्रथिवीकायिकानां सूक्ष्माऽप्तेजोवायुवनस्पतित्रसकायिकानां सूक्ष्मनिगोदानाम् 'बायराणं बायरपुढवीकाइयाणं जाव बायरतसकाइयाण य' सामान्य बादराणां बादरपर्याप्तक वनस्पतिकायिक निगोद के आश्रय असंख्यात अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक निगोद जीवों का उत्पाद होता रहता है। 'बायरा अपज्जत्तगा विसेसाहिया' बादर वनस्पति अपर्याप्तकों की अपेक्षा अपर्याप्त बादर जीव विशेषाधिक हैं 'बायसा पज्जत्ता विसेसाहिया' अपर्याप्त बादर जीवों की अपेक्षा बादर पर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं। इस प्रकार से यह बादर जीवों के आश्रित अल्पबहुत्व का कथन है। अब सूक्ष्म बादर जीवों का अल्पबहुत्व इस प्रकार से है-'एएसि णं भंते ! सुहुमाणं सुहुम पुढवीकाइयाणं जाव सुहुम निगोदाणं' गौतम ने यहां ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! इन सूक्ष्मों के, सूक्ष्म पृथिवीकायिकों के, यावत्-सूक्ष्म अप्कायिकों के, सूक्ष्म तेजस्कायिकों के, सूक्ष्म वायुकायिकों के, सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के, सूक्ष्म त्रसकायिकों के-एवं सूक्ष्म निगोदों के-तथा 'बायराणं, बायरपुढवीकाइयाणं जाव बायर तसकाइयाणं कयरे कयरेहिंतो' बादरों के बादर पृथिवीकायिकों આશ્રયથી અસંખ્યાત અપર્યાપ્તક બાદર વનસ્પતિકાયિક નિગોદ જીવન ઉત્પાદ थती २ छ. 'बायरा अपज्जत्तगा विसेसाहिया' मा६२ वनस्पतिय अपर्या तीना ४२di २५५र्यास्त: ॥६२ ७१ विशेषाधि४ छ. 'बायरा पज्जत्ता विसेसाहिया' २५पर्याप्त माह२ वाना ४२ता मा२ ५स्त४०१ विशेषाधि छ. આ રીતે આ બાદર જે સંબંધી અલ્પ બહત્વનું કથન કરેલ છે. वे सूक्ष्म पा४२ वानु २५८५ पडत्व अपामा मावे छ.-'एएसि णं भते ! सुहमपुढवीकाइयाणं जाव सुहुम निगोदाणं' गौतमस्वाभीमे मा संच मां એવું પૂછ્યું છે કે- હે ભગવદ્ આ સૂક્ષ્મ જીવેમાં સૂમ પૃથ્વીકાયિકોમાં યાવત્ સૂમ અપ્લાયિકમાં સૂક્ષ્મ તેજસ્કાચિકેમાં સૂફમવાયુકાયિકોમાં, સૂક્ષ્મ वनस्पतियोभी, सूक्ष्म स4ि3igi, मने सूक्ष्म निगोहमा तथा 'बायराणं, बायर पुढवीकाइयाणं जाव बायर तसकायियाणं कयरे०' मामा मार જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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