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________________ ११५० जीवाभिगमसूत्रे पलब्धौ कियतः कालस्य व्यवधानता ? जघन्येनाऽन्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षतो वे सागरोपमसहस्र संख्येयवर्षाधिके, त्रसकायस्य यावान् कायस्थिति कालः स एव काल एकेन्द्रियस्यापि त्रसकायस्थितिकालश्च-संख्येयवर्षसहस्राभ्यधिकः सागरोपमसहस्रद्वयात्मकः इति । 'बेइंदियस्स णं अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्मेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' द्वीन्द्रियस्य खलु भदन्त ! अन्तरं कालतः कियच्चिरं भवति भगवानाह ?-गौतम ! जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण वनस्पतिकालः द्वीन्द्रियादिभ्य उद्धृत्य वनस्पतिष्वनन्तकालपर्यन्तमवस्थानात् इति । 'एवं तेइंदियस्स चउरिदियस्स पंचिंदियस्स' एवं द्वीन्द्रियसूत्रवत् त्रि-चतु-पश्चेन्द्रिय सूत्राण्यपि भावनीयानि सर्वत्रैवं जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षेण वनस्पतिकालं यावदिति एकेन्द्रिय का अंतर काल है सूत्रकार स्वयं आगे ऐसा कहेगें-'तसकाइए णं भंते ! तसकाय त्ति कालतो केवच्चिरं होइ' गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दोसागरोवमाइं संखेज्जवासमभहियाई । बेइंदियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवच्चिरं होति' हे भदन्त ! दीन्द्रिय की पर्याय को छोडकर पुनः द्वीन्द्रिय पर्याय को प्राप्त करने में अन्तर काल कितनेकाल का होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' हे गौतम हीन्द्रिय पर्याय को छोडकर पुनः द्वीन्द्रिय पर्याय को प्राप्त करने में अन्तरकाल जघन्य से तो एक अन्तर्मुहूर्त का पडता है और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल प्रमाण पडता है ‘एवं तेइंदियस्स चउरिदियस्स पंचेदियस्स' इसी प्रकार से तेइन्द्रिय पर्याय को छोड़ने पर पुनः उसकी प्राप्ति करने में चौइन्द्रिय पर्याय को छोडकर पुनः उसकी प्राप्ति કાળ છે. એજ એકેન્દ્રિય જીવને અંતર કાળ કહેલ છે. તે સૂત્રકાર સ્વયં આગળ 3 छ. 'तसकाइएणं भंते ! तसकायत्ति कालओ केवच्चिर होई, गोयमा ! जहणेणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमाइ संखेज्जवासमभहियाई; बेइंदियस्स णं भंते ! अंतरं कालओ केवच्चिर होति' इ मापन ! दीन्द्रिय वन पर्यायने છોડીને ફરીથી કીન્દ્રિયપણાને પ્રાપ્ત કરવામાં કેટલા કાળને અંતરકાળ હોય १२॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा ! जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो' है गौतम ! हीन्द्रिय पर्याय छोडीने शथी दीन्द्रिय પર્યાયને પ્રાપ્ત કરવામાં અંતર કાળ જઘન્યથી તે એક અંતર્મુહૂર્તન થાય છે भने ४थी वनस्पति ४७ प्रभानु छ. 'एवं तेइंदियस्स चउरिदियस्स पंचिंदियरस' मा प्रमाणे तेन्द्रिय पर्यायने छोडीने शथी तेने प्राप्त ४२વામાં, ચૌઈન્દ્રિયના પર્યાને છોડીને ફરીથી ચૌઈ દ્રિય પણાને પ્રાપ્ત કરવામાં અને પંચેન્દ્રિય પર્યાયને છોડીને ફરીથી પંચેન્દ્રિય પણાને પ્રાપ્ત કરવામાં જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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