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जीवाभिगमसूत्रे ओवमाई' तिर्यग्योनिकानां जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षेण त्रीणि पल्योपमानि स्थितिः ‘एवं मणुस्साणं वि' एवं मनुष्याणामपि । 'देवाणं जहा नेरइयाणं' देव नैरयिकयोः जघन्येन दशवर्षसहस्राणि उत्कर्षतः त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि । 'देवनेरइयाणं जा चेव ठिई सच्चेव संचिट्ठणा' देवानां नैरयिकाणां यावतीस्थिति भवस्य तावत्येव कायस्य १०००० जघन्येन ३३ सागरोपमाणि उत्कर्षतः। 'तिरिक्खज़ोणियस्स' तिर्यग्योनिकस्य कायस्थिति 'जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं' मुहूर्त की कही गई है और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है देवों की स्थिति जघन्य से दश हजार वर्ष की कही गई है और उत्कृष्ट से ३३ सागरोपम की कही गई हैं एवं मनुष्यों की जघन्यस्थिति एक अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है यह जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति तिर्यश्च और मनुष्यों की जो कही गई हैं वह भोगभूमिया तिर्यश्च और मनुष्यों की अपेक्षा लेकर कही गई है यही बात-सूत्रकार ने इन आगे के सूत्रों द्वारा प्रकट की है 'तिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं, एवं मणुस्साण वि, देवाणं जहा णेरइयाणं। 'देव नेरइयाणं जा चेव ठिई सच्चेव संचिट्ठणा' देव और नैरयिकों की जो भवस्थिति है वही उनकी संचिट्ठणा-कायस्थिति है क्योंकि नैरयिक जीवों का सीधा नैरयिकों में उत्पाद नहीं होता है क्योंकि 'नो नेरइए नेरइएसु उववज्जइ' ऐसा सिद्धान्त कथन है इसी तरह देव चव પ્રમાણે તિર્યંચોની જઘન્ય સ્થિતિ એક અંતમુહૂર્તની કહેલ છે. અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ પાપમની કહેવામાં આવેલ છે. દેવેની જઘન્ય સ્થિતિ દસ હજાર વર્ષની કહેલ છે અને ઉત્કૃષ્ટ થી ૩૩ તેત્રીસ સાગરોપમની કહેવામાં આવેલ છે. અને મનુષ્યની જઘન્ય સ્થિતિ એક અંતમુહૂતની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ વણ પાપમની કહેવામાં આવેલ છે. આ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ તિર્યંચ અને મનુષ્યની જે કહેવામાં આવેલ છે તે ભેગભૂમિ ના તિય"ચ અને મનુષ્યની અપેક્ષા લઈને કહેવામાં આવેલ છે. એજ વાત 20 सामना सूत्र द्वारा प्रगट ४२वामां मावेस छ. 'तिरिक्खजोणियाणं जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं एवं मणुस्साण वि, देवाणं जहा णेरइयाणं देवणेरइयाणं जा चेव ठिई सच्चेव संचिदणा' हे अने નિરયિકાની જે જીવ સ્થિતિ છે, તેજ તેની સંચિકૃણા-કાયસ્થિતિ છે કેમ કેनेयि वन त सीधा नैरयिमा थत नथी. 'नो नेरइए नेरइएसु उववज्जइ' २॥ प्रभारी सिद्धान्तनु ४थन छ. मेरी प्रमाणे हेव यवान
જીવાભિગમસૂત્ર