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________________ १०९० जीवाभिगमसूत्रे सनत्कुमारमाहेन्द्रयोर्ब्रह्मलोकेऽपि च देवानां शरीराणि पद्मपक्ष्मवत्-पिशङ्ग कमल किञ्जल्कवद्गौराणि इति भावः । 'बंभलोगे णं भंते० ! गोयमा ! अल्लमधुगवण्णाभा वण्णेणं पन्नत्ता एवं जाव गेवेज्जा' ब्रह्मलोके खलु भदन्त ! देवानां शरीराणि ? गौतम ! अल्लमधुकवर्णानि शुक्लानि प्रज्ञप्तानि । एवं यावद्यैवेयाः सर्वेषां शुक्लानि इति । 'अनुत्तरोववाइया परमसुक्किल्ला वण्णेणं पन्नत्ता' अनुत्तरोपपातिकानां तु परमशुक्लानि शरीराणि वर्णेन प्रज्ञप्तानि । 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसुदेवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पन्नत्ता ? गोयमा ! से जहा णामए कोटपुडाण हे गौतम ! इन देवों के शरीर का वर्ण तपे हुए सुवर्ण के वर्ण जैसा होता है 'सणंकुमारमाहिदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पण्णत्ता' सनकुमार और माहेन्द्र के देवों के शरीर का वर्ण पद्म के जैसा गोरा होता है अर्थात पिशङ्ग कमल की शर के समान गौर वर्ण का इनका शरीर होता है 'बंभलोगे णं भंते !' हे भदन्त ! ब्रह्मलोक के देवों के शरीर का वर्ण कैसा होता हैं ? उत्तर में प्रभु कहते है 'गोयमा ! अल्लमधुगवण्णाभा वण्णेणं पण्णत्ता' हे गौतम ! गीले महुया का जैसा वर्ण होता है वैसा ही वर्ण ब्रह्मलोक के देवों के शरीर का होता है 'एवं जाव गेवेजा' शरीर के ऐसे वर्ण होने का यह कथन अवेयक विमानों के देवों तक में जानना चाहिये 'अणुत्तरोववातिया परमसुकिल्ला वण्णेणं प०' परन्तु अनुत्तर विमानवासी जो देव हैं उनके शरीर का वर्ण परमशुक्ल होता है 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता' हे भदन्त ! सौधर्म और रत्ताभा वण्णेणं पण्णत्ता' हे गौतम ! मा हेवाना शरीर व तापामां आवस सोनाना नावाडाय छे. 'सणंकुमारामाहिं देसुणं पउमपम गोरा वण्णेणं पण्णत्ता' સનકુમાર અને મહેન્દ્ર દેના શરીરને વર્ણ કમળના જે ગીર હોય છે. અર્થાત્ પિશંગ કમળના કેસરના જેવા ગોરા વર્ણના તેમના શરીરે હોય છે. 'बंभलोगेणं भंते !' है भगवान ब्रह्मसान हवाना शरीरनो वा । हाय छ ? या प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ३ छ -'गोयमा ! अल्ल मधुकगवण्णभा वण्णेणं पण्णत्ता' हे गौतम ! elel मानी । पशु डाय छ, मेरी प्रमाणेने। वर्ण ब्रह्मसना हेवाना शरीरानो डाय छे. 'एवं जाव गेवेज्जा' शरीरमा पापा પ્રકારનો વર્ણ હવા સંબંધીનું આ કથન શૈવેયક વિમાનના દેવોના કથન ५यत सभ७ से. 'अणुत्तरोववातिया परमसुकिल्ला वण्णेणं पण्णत्ता' ५२'तु અનુત્તર વિમાનવાસી જે દે છે, તેમના શરીરને વણ પરમ શુકલ હોય छ. 'सोहम्मीसाणेसु णं भंते ! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पण्णत्ता' हे જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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