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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५७ विजयद्वारपार्श्व स्थितनैपेधिक्या:नि० ९१ युष्मन् इतिच्छाया' व्याख्या प्राग्वत् कर्तव्या। 'तेसु णं णागदंतएम' तेषु खलु नागदन्तकेषु 'बहवे किण्हसुत्तवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा' वहवः कृष्णसूत्रवृत्तावलम्बितमाल्यदामकलापाः 'नीलमुत्तबट्टवग्धारिय मल्लदामकलावा' नीलसूत्रबद्धावलम्वितमाल्यदामकलापाः यावत् 'सुक्किल्लमुत्तबट्टबग्घारिय मल्लदामकलावा' शुक्लसूत्रबद्धावलम्बितमाल्यदामकलापाः 'चिट्ठति' तिष्ठन्ति 'तेसिणं तोरणाणं पुरओ' तेषां खलु तोरणानां पुरतः 'दो दो हयसंघाडा पन्नत्ता' द्वौ द्वौ हयसंघाटको द्वौ द्वौ गजसंघाटको द्वौ द्वौ नरसंघाटको द्वौ द्वौ किंपुरुषसंघाटको द्वौ द्वौ महोरगसंघाटको द्वौ द्वौ गन्धर्वसंघाटको द्वौ द्वौ वृषभसंघाटको प्रज्ञप्तौ, ते च संघाटाः कथंभूता स्तत्राह-'सव्वरयणामया व्याख्या पहिले की जा चुकी है 'तेसु णं णागदंतएसु बहवे किण्ह सुत्तववग्घारियमल्लदामकलावा' इन नागदन्तों के ऊपर अनेक काले डोरों से गूथी हुई गोल २ पुष्पों की मालाएं लटक रही है कहीं२ 'नीलसुत्तववग्घारियमल्लदामकलावा' नीले सूत्र से गूथी हुई पुष्पों की मालाएं लटक रही है यावत् कहीं२-'मुक्किल्लसुत्तववग्घारियमल्लदामकलावा' कहीं सफेद डोरों से गूथी हुई पुष्पों की मालाएं लटक रही है । 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ' इन तोरणों के आगे 'दो दोहयसंघाडा पन्नत्ता' दो दो हयसंघाटक, 'दो दो गयसंघाडा' दो दो गजसंघाटक-दो दो हाथीयों की पंक्ति 'दो दो नरसंघाडा' दो दो मनुष्य संघाटक-दो दो किंनरसंघाडा' दो दो किन्नरसंघाटक 'दो दो किंपुरिससंघाडा' दो दो किंपुरुषसंघाटक, दो दो महोरगसंघाटक दोदो गंधर्वसंघाटक एवं दो दो वृषभसंघाटक कहे गये हैं। ये सब संघाटक 'सवरयणा४२वामा भावी जयेश छ. 'तेसु णं णागदंतपसु बहवे किण्हसुत्तवट्ठवग्धारिय मल्लदामकलावा' से नागह-तानी ५२ अने । होराथी ५२।यस गाण ध्यानी भाजायोटी २दा छ. यां या 'नीलसुत्तवट्टवग्घारियमल्लदाम कलावा' नीद सूत्रथी गुथवामा मावेस पुष्पानी भाषामा सी २९ छयावत् ४यां यां 'सुस्किल्लसुत्तवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा' स३४ होराथी यूथपामा मावेस ५०पानी भाजा टी रहेस छ. 'तेसिं गं तोरणाणं पुरओ' मे तोरणानी मा 'दो दो हयसंधाडा पण्णत्ता' मध्ये यसपाटा ५०. घोडनी पति 'दो दो गयसंधाडा' ५५ १०४ सपाटा। मे हाथीनी पतियो 'दो दो नरसंघाटा' मध्ये मनुष्य सघाट- मनुष्यनी पति 'दो दो किन्नरसंघाटा' ५५ २ सघाटाये। 'दो दो किंपुरिस संघाडा' ये કિંપુરૂષની પંક્તિ, બબ્બે મારગસંઘાટક, બલ્બ ગંધર્વ સંઘાટક, અને બબ્બે જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006345
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1580
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size84 MB
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