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________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ सू.८ सप्तपृ. घनोदध्यादीनां तिर्यग्वाहल्यम् 'कोसूणाई पंचजोयणाई बाहल्लेणं पन्नत्ते'क्रोशोनानि क्रोशैकेन हीनानि पञ्चयोजनानि शर्कराप्रमाया घनवातवलय स्तिर्यग्वाहल्येन प्रज्ञप्त इति । ‘एवं एएणं अभिलावेणं' एवम् एतेन पूर्वोक्तेन अभिलापेन-आलापकमकारेण 'बालुयप्पभाए पंचजोयणाई बाहल्लेणं पन्नत्ते' बालुकामभायाः पञ्चयोजनानि बाहल्येन प्रज्ञप्ता, हे भदन्त ! एतस्या वालुकामभाया घनवातवलयः कियान् तिर्यग्बाहल्येन प्रज्ञप्तः १ भगवान् आह-हे गौतम! बालुकाप्रभाया घनवातवलयः पञ्चयोजनानि तिर्यग्वाहल्येन प्रज्ञप्तः, इति भावः । 'पंकप्पभाए सक्कोसाई पंचजोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते' पङ्कप्रभायाः सक्रोशानि क्रोशसहितानि पञ्चयोजनानि बाहल्येन प्रज्ञप्ता, हे भदन्त ! एतस्याः पङ्कप्रभायाः पृथिव्याः घनवातवलयः कियान् तिर्यग्वाहल्येन प्रज्ञप्त इति प्रश्नः, भगवानाह- हे गौतम ! पङ्कप्रभायाः पृथिव्याः घनवातवलयः क्रोशैकाधिक पञ्चयोजनानि तिर्यग्बाहल्येन प्रज्ञप्त इतिभावः। 'धूमप्पभाए अद्धगौतम! शर्कराप्रभा का धनवातवलय तिर्यग्बाहल्य की अपेक्षा एक कोश कम पांच योजन का मोटा कहा गया है 'एवं एएणाभिलावेणं' इसी आलापक प्रकार से ऐसा भी प्रश्न करना चाहिये-हे भदन्त ! बालुकाप्रभा का जो वातवलय है वह तिर्यग्बाहल्य की अपेक्षा कितना मोटा कहा गया है उत्तर में प्रभु कहते हैं- गौतम ! 'वालुयप्पभाए पंचजोयणाई बाहल्लेणं पण्णत्ते' बालुकाप्रभा का घनवातवलय तिर्यग्बाहल्य की अपेक्षा पांच योजन का मोटा कहा गया है 'पंकप्पभाए सकोसाइपंचजोयणाई बाहल्लेणं पनत्ते' हे भदन्त ! पंकप्रभा पृथिवी के घनवातवलय तिर्यग्बाहल्य की अपेक्षा कितना मोटा कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - पङ्कप्रभा का घनवातवलय एक कोश अधिक पांच योजन का मोटा तिर्यग्बाहल्य की अपेक्षा कहा गया है 'धूम्मप्प. भाए अद्ध छट्ठाई जोयणाई बाहल्लेणं पनत्ते' धूमप्रभा पृथिवी का घनवात वलय ॥५॥ अर्द्धषष्ठ अर्थात् साढे पांच योजन का मोटा तिर्यગૌતમ! શર્કરપ્રભાને ઘનવાતવલય તિર્યબાહલ્યની અપેક્ષાથી એક કેસ કમ पांय यानी डेस छे. 'एवं एएणाभिलावेण” मे प्रमाणे मामासान પ્રકારથી એ પણ પ્રશ્ન કરે જોઈએ કે હે ભગવદ્ વાલુકાપ્રભા પૃથ્વીને જે ઘનવાતવલય છે, તે તિર્યામ્બાહલ્યની અપેક્ષા કેટલે વિશાળ કહેલ છે ? આ प्रशन उत्तरमा प्रभु ४ हे गौतम ! 'वालुयप्पभाए पंचजोयणाई बहल्लेण' पम्नत्ते' वामनाना धनवात सय छ, ते तियायनी अपेक्षाथी पांय योजना ४८ छ 'पंकप्पभाए सक्कोसाई पंचजोयणाईबाहल्लेणं पन्नत्ते' હે ભગવન પંકપ્રભા પૃથ્વીને ઘનવાતવલય તિર્યંમ્બાહુલ્યની અપેક્ષાએ કેટલે जी. १० જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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