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________________ ७९६ जीवाभिगमसूत्रे कमलविशेषः, पद्मं सूर्यविकासि, कुमुदं चन्द्रविकासि, नलिनम्-ईषद्रक्त पद्म सुभगं पद्मविशेषः सौगन्धिकं कल्हारम्, पौण्डरीकं सिताम्बुजम् तदेव बृहन्महापौण्डरीकम, शतपत्रसहस्राने पद्मविशेषौ पत्रसंख्याकृतभेदौ, एभिः प्रफुल्लैः-विकसितैः केसरेति केसरोपलक्षित रुपचिता उपचितशोभाका द्वीपसमुद्राः । 'पत्तेयं पत्तेयं' प्रत्येकं प्रत्येकम् एकैको द्वीपः समुद्रश्चेत्यर्थः 'पउमवरवेइयापरिक्खित्ता' पदमवरवेदिकापरिक्षिप्ताः 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता' प्रत्येकं प्रत्येकं वनषण्डपरिक्षिप्ताः सन्ति, एतादृशाः 'अस्सि तिरियलोए' अस्मिन् तिर्यग्लोके 'असंखेज्जा दीवसमुद्दा सयंभूरमणपज्जवसाणा' असंख्येया द्वीपसमुद्राः स्वयंभूरमणपर्यवसाना जम्बूद्वीपादयो द्वीपाः स्वयंभूरमणद्वीपपर्यवसानाः, लवणसमुद्रादयः समुद्राः स्वयंभूरमणसमुद्रपयेवसानाः, 'पण्णत्ता समणाउसो! प्रज्ञप्ता:-कथिता: हे श्रमण ! नलिनों से पत्रों से सुभगों से पद्मविशेषों से सौगन्धिकों से विशेष प्रकार के कमलों से पौण्डरीकों से सफेद कमलों से वडे २ पुण्ड. रीकों से शतपत्र वाले कमलों से और सहस्रपत्रों वाले कमलों से ये द्वीप और समुद्र सदा उपचित शोभावाले बने रहते है । 'पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइया परिक्खित्ता' ये प्रत्येक द्वीप और समुद्र पद्मवरवेदिका से घिरे हुए है 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता' ये प्रत्येक वनखण्ड से विढे हुए है-'अस्सि तिरियलोए असंखिज्जा दीवसमुद्दा सयंभूरमण. पज्जवसाणा पण्णत्ता समणाउसो' हे श्रमण आयष्मन् इस तिर्यग्लोक में ऐसे ये द्वीप एवं अन्तिम समुद्र स्वयंभूरम गद्वीपतक और अन्तिम स्वयंभूरमणसमुद्र तक असंख्यात है। 'अस्सि तिरियलोए' इस सूत्रपाठ द्वारा द्वीपसमुद्रों का स्थान सूत्रकारने प्रकट किया है 'असंखेज्जा' નલિનેથી પત્રોથી, સુભગોથી પદ્મવિશેષેથી સૌગન્ધિકથી વિશેષ પ્રકારના કમળોથી ડરીક સફેદ કમળથી મોટા મોટા પૌંડરિકથી શતપત્ર સોપાંખડીવાળા કમળોથી અને હજાર પાંખડીવાળા કમળથી એ દ્વીપ અને સમુદ્ર સદા ભાય भान यता २९ छे. 'पत्तेय पत्तेय पउमवरवेइया परिक्खित्ता' मा ४२४ द्वीप भने समुद्र पझ१२ थी धेशयता छ. 'पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता' मा १२४ १५ समुद्र वनमथी रायेा छे. 'अस्सि तिरियलोए असंखिज्जा दीवसमुद्दा सयंभूरमणपज्जवसाणा पण्णत्ता समणाउसो' श्रम मायुष्मन् આ તિર્યશ્લેકમાં એવા આ દ્વીપ અને અંતિમ સમુદ્રો સ્વયંભૂરમણ દ્વીપ ५- म मतिम स्वयंभूरमण समुद्र पर्यत असंध्यात छ. 'अस्सि तिरियलोए' मा सूत्रा द्वारा दी५ समुद्रोनु स्थान सूत्रा२ प्रगट ४२ छे. 'असंखेज्जा' मा सूत्रपाद्वारा दी५ समुद्रानी संध्या प्रगट ४२ छ. 'दुगुणा જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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