SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 807
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ५१ द्वीपसमुद्रनिरूपणम् ७९५ गच्छन्तः २ तथाहि - जम्बूद्वीप एकयोजनलक्षः लवणसमुद्रो द्वे योजनलक्षे धातकीखण्डश्च त्रीणि योजनलक्षाणि, इत्यादि, 'ओभासमाणवीचिया' अवभासमाना वीचयः कल्लोला येषां ते अवभासमानवीचयः, इदञ्च विशेषणं समुद्राणां स्वाभाविकमेव, द्वीपानामपि इदं विशेषणं यथाकथञ्चित् संभवति, द्वीपेष्वपि इदनदनदी तडागादिषु कल्लोलसंभवादिति । तथा ते द्वीपसमुद्राः कीदृशाः सन्तीति तान् वर्णयति - 'बहु०' इत्यादि, 'बहुउप्पलपउम - कुमुदनलिण सुभगसोगंधियपोंडरीय महापडरीय सयपत्तसहस्सप तपफुलकेसरोवचिया' बहूत्पलपद्मकुमुदन लिनसुभगसौगन्धिक पुण्डरीक महापुण्डरीक शतपत्र सहस्रयत्र प्रफुल्ल केसरोपचिताः, तत्रोत्पलं माणा२ ओभासमाणवीचीया' इस सूत्रपाठ द्वारा समझाई गई है । अर्थात् जम्बूद्वीपका जितना विस्तार है उसकी अपेक्षा लवणसमुद्रका दूना विस्तार है । लवणसमुद्र के विस्तार की अपेक्षा धातकी खण्डका दूना विस्तार है । इत्यादि 'ओभासमाणवीचिया' दृश्यमान कल्लोलोतरंगो वाले यह विशेषण समुद्रों का तो है ही परन्तु द्वीपों का भी विशेषण हो सकता है क्योंकि उनमें भी हद, नदी तडाग आदि है । और उन में कल्लोलों का होना स्वाभाविक है इसी कारण ये द्वीप और 'समुद्र अवभासमान वीची-तरङ्गों वाले कहे गये है अब उन द्वीप समुद्रों का वर्णन करते है - ' बहुउप्पल पउमकुमुद्णलिणसुभगसोगंधियपोंडरीय महापडरीय सयपत्तसहस्सपत्तपप्फुल्ल केसरोवचिया' प्रफुल्लित, एवं केशर से युक्त ऐसे अनेको उत्पलो से कमलों से, पत्रों से सूर्यविकाशी कमलों से चन्द्रविकाशी कुमुदों से कुछ२ लालवर्णवाले समाणवीचिया' मा सूत्रय है द्वारा સમજાવવામાં આવેલ છે. અર્થાત્ જંબૂદ્વીપના જેટલેા વિસ્તાર છે તેની અપેક્ષાએ લવણ સમુદ્રના ખમણ વિસ્તાર છે લવણ સમુદ્રના વિસ્તારની અપક્ષાએ ધાતકી ખડના ખમણેા વિસ્તાર છે. छत्याहि 'ओभासमाणवीचिया' हेवामा भावता तरंगोवाणा या विशेषण સમુદ્રોનુ' તેા છે જ પરંતુ દ્વીપેનુ' પણ આ વિશેષણ થઈ શકે છે, કેમકે તેમાં पालु हद्द, नही, तडाग, (तजाव) विगेरे हे ४ तथा तेमां तरंगोनु होवु સ્વાભાવિક છે. એજ કારણથી આ દ્વીપા અને સમુદ્રો અવભાસમાન વીચિ તર'ગાવાળા કહેવામાં આવેલ છે. हवे मे द्वीप समुद्रोतुं वर्णन वामां आवे छे. 'बहुउप्पल पउमकुमुद णि सुभग सोगंधिय पोंडरीय महापोंडरीय सयतपत्तसहस्स पत्तपप्फुल्ल केसरो वचिया' मोलेला मने सरथी युक्त सेवा भने उत्पदोथी उभणोथी, पत्रोथी સૂર્ય વિકાશી કમળાથી, ચન્દ્રવિકાશી કુમુદ્દોથી કંઈક કંઈક લાલ વર્ણ વાળા જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy