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________________ ७४४ जीवाभिगमसूत्रे प्रथमायां पर्षदि विंशतिं देवसहस्राणि प्रज्ञप्तानि तथा-'मन्झिमियाए परिसाए' माध्य. मिकायां द्वितीयस्यां चण्डाभिधानायां पर्षदि 'चउवीसं देवसहस्सा पन्नत्ता' चतुविंशति देवसहस्राणि प्रज्ञप्तानि, तथा-'बाहिरियाए परिसाए' बाह्यायां तृतीयस्यां जाताभिधानायां पर्षदि 'अट्ठावीसं देवसहस्सा पन्नता' अष्टाविंशति देवसहस्राणि प्रज्ञप्तानि-कथितानि, तथा-बले: वैरोचनेन्द्रस्य अभितरियाए परिसाए आभ्यतरिकायां प्रथमायां पर्षदिः समिताभिधाना याम्, 'अद्वपंचमा देविसया' अर्द्ध पञ्चमानि-सार्दानि चत्वारि देवीशतानि प्रज्ञप्तानी, 'मन्झिमियाए परिसाए' माध्य. मिकायां पर्षदि 'चत्तारि देविसया पनत्ता' चत्वारि देवीशतानि प्रज्ञप्तानि, 'बाहिरियाए परिसाए अधुढा देविसया पण्णत्ता' बाह्यायां पर्षदि अर्धचतुर्थानि देवीशतानि प्रज्ञप्तानि ति । 'बलिस्स ठिईए पुच्छा' बलेः खलु भदन्त ! वैरोचनेन्द्रस्य वैरोचनराजस्य स्थितौ पृच्छा-प्रश्नः कियत्पर्यन्तं प्रश्नस्तत्राह-'जाव बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवइयं काल ठिई पण्णत्ता' इति पर्यन्तम्, यथा-आभ्यन्तर परिषदा में बीस हजार देव कहे गये हैं 'मज्झिमियाए परिसाए चउवीसं देवसहस्सा पण्णत्ता' मध्यमा परिषदा में चौवीस हजार देव कहे गये हैं 'बाहिरियाए परिसाए अठ्ठावीसं देवसहस्सा पण्णत्ता' बाह्यपरिषदा में अठाईस २८००० हजार देव कहे गये हैं तथा-'अभितरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसिया पण्णत्ता'मज्झिमियाए परिसाए चत्तारि देविसिया पण्णत्ता' 'बाहिरियाए परिसाए अछुट्टा देविसया पण्णत्ता' वैरोचनेन्द्र वैरोचनराजबलि की आभ्यन्तर परिषदा में साढे वारसौ ४५०) देवियां मध्यमा परिषदा में चारसौ ४०० देवियां और बाह्य परिषदा में साढे तीन सौ देवियां कही गई हैं 'बलिस्स ठिईए पुच्छा जाव 'बाहिरियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' यहां बलिइन्द्र की तीनों सभा मटीन्द्रनी मात्यन्त२ परिषहामा वीस २ हेवा वा छे. 'मज्झिमियाए परिसाए चउवीस देवसहस्सा पण्णत्ता' मध्यमा ५२षहामा यावीस र हेवा उद्या छे. 'बाहिरियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसहस्सा पण्णत्ता' मा परिषहामा यावीस M२ २८००० हेवे। छ. तथा 'अभितरियाए परिसाए अद्धपंचमा देविसया पण्णत्ता बाहिरियाए परिसाए अधुदा देविसया पण्णत्ता वैशयनन्द्र વૈરેચનરાજ બલિની આભ્યન્તર પરિષદામાં ૪૫૦ સાડાચારસે દેવિ કહી છે. મધ્યમ પરિષદામાં ૪૦૦ ચારસે દેવિ કહી છે. અને બાહ્ય પરિષદામાં ૩૫૦ સાડા ત્રણ સે દેવિ કહેવામાં આવેલ છે. 'बलिरस ठिईए पुच्छा जाव बाहिरियाए परिसाए देवींणं केवईय काल ठिई पण्णत्ता, 40 प्रश्न महीन्द्रनी त्रणे समान १ वियानी स्थितिना संज જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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