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________________ ६४३ प्रमेयद्योतिका टीका प्र. ३ उ. ३ सू. ४० ए० इन्द्रमहोत्सवादि वि. प्रश्नोत्तराः न्दमह इति वा - मुकुन्दः - कृष्णः तमधिकृत्य क्रियमाण उत्सवः, 'णागमहाइ वा ' नागो नागकुमारो भवनपतिविशेषः तस्य मह उत्सवः । 'जक्ख महाइ वा' यक्षमह इति 'भूतमहाइवा' भूतमह इति वा, तत्र यक्षभूतौ व्यन्तर विशेषौ तयोर्मह उत्सवः 'कूवमहाइ वा ' कूपमह इति वा, नवनिर्मापित कूपस्योत्सवः, 'तलायणई महाइवा' तडागनदीम इति वा, तडागः नदी चेति द्वयं प्रसिद्धं 'दहमहाइ वा' इदमह इति वा, तत्रऽगाधजलो ह्रदः तस्योत्सवः, 'पव्वयमहाइ वा' पर्वतमह इति वा, 'रुक्ख 'मुगुदमहाइ वा' मुकुन्द नाम कृष्ण का है इस कृष्ण को लक्षित कर किये गये उत्सव का नाम मुकुन्दोत्सव है 'णागमहाइ वा' नाग नाम नाग कुमार का है यह भवनपति देव का एक मेद है इस नाग कुमार को लक्षित कर किये गये उत्सव का नाम नागोत्सव है 'जक्ख महाइ वा' यक्ष यह व्यन्तर देवों का एक भेद है इस यक्ष को लक्षित कर किये गये उत्सव का नाम यक्षोत्सव है 'भूत महाइ वा' भूत भी व्यन्तर देवों का ही एक भेद है इस भूत को लक्ष्य कर किये गये उत्सव का नाम भूत मह है 'कूव महाइ वा' नये बनाये गये कूप को लक्षित कर किये गये उत्सव का नाम कूप महोत्सव है 'तलायणई महाइ वा ' तालाब एवं नदी को लक्षित कर किये गये उत्सव का नाम तडागमह और नदी मह है 'दह महाइ वा पव्वय महाइ वा' अगाध जल वाले जलाशय को ह्रद कहते हैं ऐसे हूद विशेष को एवं पर्वत को लक्षित कर अश्वामां आवेला उत्सवनुं नाम शिवोत्सव छे. 'वेसमण महाइवा' वैश्रभनाभ કુબેરનું છે. તે ઉત્તર દિશાના એક લેાકપાલ દેવ છે. આ કુબેરને ઉદ્દેશીને થવા वाणा उत्सवनुं नाम वैश्रवशोत्सव छे. 'मुगुंद महाइवा' भुकुहनु नाम द्रुष्णुनु छे. ये ढष्णुने उद्देशीने थनाश उत्सवनुं नाम भुञ्जुहोत्सव छे. 'णागमहाइवा ' નાગનામ નાગકુમારનુ’ છે, આ ભવનપતિ દેવના એક ભેદ રૂપ છે. આ નાગકુમારો छे खेने उद्देशीने उरवामां आवेल उत्सवनुं नाम नागोत्सव छे. 'जक्ख महाइवा ' યક્ષ એ વ્યન્તર દેવના એક ભેદ છે. આ યક્ષને ઉદ્દેશીને કરવામાં આવેલ उत्सवनुं नाम यक्षोत्सव छे 'भूतमहाइवा' लूत या व्यन्तर हेवनाथ मे लेह છે. આ ભૂતને ઉદ્દેશીને કરવા આવનારા ઉત્સવનું નામ ‘ભૂતમહોત્સવ' છે. 'कुत्र महाइवा' नवा मनाववामां आवे डुवाने उद्देशीने अश्वामां आवे महोत्सव छे. 'तलावणई महाइवा' तजाव मने नहीने उद्देशीने १२वामां मावेस उत्सवनुं' नाम ‘तडाग नही महोत्सव अहेवाय छे. 'दह महाइवा' पव्वय महाइवा ' અગાધ પાણીવાળા જળાશયને હા કહે છે. એવા હદ વિશેષને અને પતને જીવાભિગમસૂત્ર
SR No.006344
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages918
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size46 MB
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